Tuesday, March 31, 2009
आओ ''पूर'' फाडे
आईए जनाब । कुछ बात करते हैं, कुछ पूर फाडते हैं। शायद आप पूर का अर्थ समझते होंगे। नहीं समझते तो हम बताए देते हैं। पूर का अर्थ है कपडा यानि आईए हम कपडे फाडते हैं। दरअसल हमारे देश में कपडे फाडने का एक सीजन आता है, यह तो खुद की महर है कि हमारे देश में ऐसा सीजन बार बार आता है, जो लोग पूर फाडने के शौकीन है और जिनका अस्तित्व ही पूर फाडने पर टिका हुआ है, उन लोगों का जीवन ही इसी कारण चल रहा है कि समय समय पर पूर फाड लेते हैं। निश्चित ही आप इतने नासमझ नहीं है कि पूर फाडने की इस परम्परा के बारे में नहीं जानते हो। हमारे यहां (वैसे विदेशों में भी) पूर फाडने का सीजन चुनाव ही है। जब जब चुनाव आता है तब तब हमारे यहां के लाखों या फिर करोडों लोगों को यह मौका मिल जाता है। आजादी के बाद से देश में प्राय पांच वर्ष की सरकार रही है कभी कभार ही तेरह दिन के हालात आए हैं। ऐसे में पांच वर्ष तक पूरा अवसर मिलने के बाद भी कोई बात नहीं कहते। बहुत कठिन काम है कि हम पांच वर्ष तक किसी भी गंभीर से गंभीर बात को पचा जाते हैं, बोलते तक नहीं है, साथ रहकर भी शांत और सौम्य बने रहते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव आयोग रिवाल्वर की गोली हवा में फायर करके तथाकथित 'आचार संहिता' लगाता है, वैसे ही हमारे यहां पूर फाडने वालों की दौड शुरू हो जाती है। अब आप यह मत समझना कि मैं ब्लॉग पर आपके बारे में कुछ लिख रहा हूं, आप और मैं तो बहुत छोटे प्यादे हैं, हम तो उन पांच सौ खास पूर फाडने वालों की चर्चा कर रहे हैं जो हर वक्त साथ रहकर भी पांच वर्ष नहीं बोले और आज जब आचार संहिता लग गई तो एक दूसरे के कपडे फाड रहे हैं, कोई गबन का आरोप लगा रहा है तो कोई चरित्र का। यह सही है कि जनता के बीच बोलने का यही अवसर है लेकिन जनाब पांच वर्ष संसद में कुछ बोल लेते तो जनता को वैसे ही पता चल जाता। मजे की बात है कि चार वर्ष तक साथ रहने के बाद एक बडे दल को सरकार में खोट नजर आ गई और पांच साल पूरे होते होते पूरी सरकार बेकार हो गई। क्या नेता इतने नादान थे कि शुरू में पता नहीं था कि जिन्हें समर्थन दे रहे हैं वो देश का भला कर सकेंगे या नहीं ? अगर पता नहीं था तो उन्हें इस बार ध्यान रखना होगा कि किसी भी स्थिति में समर्थन नहीं दें। यह मत कहना कि फलां पार्टी फलां पार्टी से बेहतर है, इसलिए समर्थन दे रहे हैं। जिस तरह इन दिनों सामने वाले के पूर फाड रहे हैं, वैसे ही फाडते रहना। अब जो सरकार में थे, उनकी बात कर लें। अब सामने वालों पर तरह तरह के आरोप लगा रहे हैं, जब सरकार में थे पांच साल तक बोले ही नहीं। किसी के बारे में तो क्या अपने बारे में भी नहीं मिले। ऐसे में किसी ने किसी के इशारे पर चलने की बात कह दी तो क्या गलत ? अब पांच साल बीते तो वो भी पूर फाडने चले। तब यह किया, तब वह किया। अरे जनाब पांच साल आपके पास सत्ता थी, उन्होंने कुछ गलत किया तो आप सुधार देते। आपने उसी मुद़दे पर क्या किया, जिस पर सामने वाले के बारे में बोल रहे हैं? चूंकि चुनाव के वक्त पूर फाडने की परम्परा है इसलिए आप भी बोल गए। सबसे ज्यादा सवाल तो खास प्रतिद्वंद्वी पर है, आपने ऐसा क्या किया पांच वर्ष में कि देश की धारा बदलती। दो चैनल को भाषण्ा देने और अपनी वेबसाइट को एडजस्ट करने के अलावा। जब आप रथ पर सवार होकर पूरे देश को नाप रहे थे, तब क्या छोटी छोटी समस्याओं के बारे में पता नहीं चला, अगर चला तो उनके बारे में संसद में बोलने से क्या परेशानी हो रही थी ? आपने भी वर्ष के अंत में भरोसा कर लिया कि जनता को क्या लेना क्या देना जो सोचे कि किसने पांच वर्ष क्या किया? वैसे आप भी सही सोचते हैं, जनता कब सोचती है, सोचती तो देश की राजनीति का यह हाल होता ? शायद नहीं, वैसे ज्यादा परेशान मत होना हमने भी पूर फाडने की रस्म अदायगी ही की है।
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5 comments:
साहब स्थिति तो ऐसी है की हमें ही अपने पूर फाड़ लेना चाहिए ,इनसे क्या कहना ,
अपनी अपनी डगर
चुनाव हो लेने दो, अपने आप ही फट जायेंगे...
ये तो पिछले चुनावो में फाड़ लिए थे. अब बचा
क्या है.
कुछ भी कहिए पूर तो फट ही रहे हें। एक टांग उघड़ेगी तो ही दूसरी लजाएगी।
हरा और केसरिया तो अंग्रेज ही फाड़ गए थे अब तो बारी केसरिया के टुकड़े टुकड़े करने की है जो नेता भली प्रकार से कर रहे हैं.
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