बात से मन हल्‍का होता है

Friday, March 27, 2009

राहुल प्रियंका जैसे हो वरुण


गांधी परिवार में अब तक इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मेनका गांधी और प्रियंका वाडरा को ही गंभीरता से लिया जाता रहा है। पिछले कुछ दिनों से वरूण गांधी सुर्खियों में है। वरूण को समझने का अब तक वक्‍त नहीं मिला है लेकिन जितना समझा है उससे यह स्‍पष्‍ट है कि वो संजय गांधी के पद चिन्‍हों पर ही चल रहे हैं। पिता की तरह पूरी तरह तल्‍ख है, आक्रोश में बोलते हैं तो सोच फिकर नहीं करते, यह भी नहीं सोचते कि कहां क्‍या बोलना है और कहां ? पिछले दिनों मीडिया ने वरूण का पीछा किया लेकिन उन्‍हें कोई नुकसान नहीं हुआ। वरूण क्‍या बोले इस बारे में सभी को पता है इसके बाद भी भारतीय राजनीति ने अपने स्‍वभाव के मुताबिक इस पूरे मामले को फर्जी बताने में कोई कोर कसर नहीं छोडा। अगर राहुल गांधी भी ऐसा कुछ बोल देते तो कांग्रेस भी उन्‍हें बचाने के लिए कुछ ऐसा ही करती। किसी भी स्थिति में यह सिर्फ भाजपाई नेतागिरी से जुडा मामला नहीं है। चिंता का विषय तो यह है कि गांधी परिवार के इस वंशज के मुंह से इस तरह की बात सुनकर आम आदमी क्‍या सोचता है ? गांधी परिवार के तीन युवा इन दिनों  राजनीति में सक्रिय है और यह भी कहां जा सकता है कि कल की राजनीति भी इन्‍हीं के आसपास रहेगी। राहुल गांधी बोलते नहीं है लेकिन जब बोलते हैं तो पूरे अधिकार के साथ  अपनी बात रखते हैं। अविश्‍वास प्रस्‍ताव के वक्‍त उन्‍होंने संसद में जिस तरह अटल बिहारी वाजपेयी की तारीफ करके स्‍वयं भाजपा नेताओं से कहा इस पर तो ताली बजा दो, उन्‍होंने दो टुक कहा कि  सरकार रहे या न रहे हम प‍रमाणु समझौता करेंगे ताकि देश आगे बढे। मुझे उनमें कहीं राजीव गांधी की झलक दिखाई दी। राजीव गांधी  ने कम्‍प्‍यूटर युग की शुरूआत करते वक्‍त काफी विरोध का सामना किया। राहुल और राजीव गांधी में दिन रात का अंतर होगा लेकिन लगता है एक दिन वो राजीव गांधी के समकक्ष खडे होंगे। दूसरी  तरफ प्रियंका गांधी वाडरा है जो पर्दे के पीछे रहकर राजनीति में ज्‍यादा विश्‍वास रखती है। प्रियंका ने पिछले दिनों फिर स्‍पष्‍ट कर दिया कि वो चुनाव नहीं लड रही। अपनी मां के संसदीय क्षेत्र में उनकी सक्रियता से ही स्‍पष्‍ट है कि वो कुशल राजनीतिज्ञ है। वो आम आदमी के बीच जाने से हिचकिचाती भी नहीं है तो बडे मुद़दों पर अधिकार पूर्वक अपनी बात रखने का विश्‍वास भी रखती है। जब राजीव गांधी का अंतिम संस्‍कार हो रहा था तब इन दो बच्‍चों को देखकर नहीं लगता था कि कभी राजनीति यह कुशल नेतृत्‍व करने की स्थिति में आएंगे।  यह कांग्रेस की ''प्रोफेशनल टेनिंग'' का हिस्‍सा हो सकती है लेकिन यह स्‍पष्‍ट है कि राहुल और प्रियंका हर हाल में वरूण गांधी से अधिक  परिपक्‍व दिखाई देते हैं। निश्चित रूप से आज संजय गांधी होते तो देश की राजनीति का स्‍वरूप कुछ अलग होता ऐसे में वरूण गांधी भी नए चेहरे के रूप में होते। मेनका गांधी अपने अपने बेटे को प्रोफेशनल नहीं बना सकी। वैसे भारतीय राजनीति में सफलता उन्‍हीं के हाथ लगती है जो बढचढ कर बोलते हैं और चर्चा में बने रहते हैं। अब तो कांग्रेस भी नरेंद्र मोदी के साथ वरूण गांधी का नाम लेने लगी है। वरूण ने अब तक किसी गंभीर मुद़दे अपने विचार नहीं रखे। रखे भी है तो प्रभावी रूप से जनता के सामने नहीं आए। जो विचार आए हैं वो प्रभावित तो करते हैं लेकिन बिगडे हुए स्‍वरूप में। देश में ऐसे लोग भी है जो वरूण गांधी को भी राहुल और प्रियंका की तरह राजनीति में चमकते देखना चाहते हैं। क्‍योंकि संजय गांधी के दिवाने आज भी कायम है।