चीन के राष्ट्रपति भारत यात्रा पर है। वो नई दिल्ली के बजाय गुजरात के अहमदाबाद पहुंचे। जहां पहली बार किसी राष्ट्राध्यक्ष का स्वागत हुआ। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भी पहुंचे लेकिन तब वो उस पद पर नहीं थे। दिल्ली के बजाय अन्यत्र किसी राष्ट्राध्यक्ष का यह संभवत: पहला अवसर होगा। वैसे यह चर्चा का विषय नहीं होना चाहिए हमारे प्रधानमंत्री को जैसा उचित लगे, वैसा उनको करना चाहिए। फिलहाल प्रधानमंत्री ने उन्हें गुजरात में आमंत्रित किया है क्योंकि वर्तमान में चीन से मिलने वाली सभी तरह की सहायताएं गुजरात को ही समर्पित होने वाली है। चीन के राष्ट्रपति तोहफे के रूप में जो योजनाएं गुजरात में लाए हैं, उन पर करीब अरबों रुपए चीन ही खर्च करेगा जबकि अधिकार गुजरात सरकार का होगा। नरेंद्र मोदी का यह प्रयास निश्चित रूप से बेहतर है। चूंकि वो गुजरात के हैं, इसलिए उनका गुजरात के प्रति विशेष लगाव होना स्वभाविक है। किसी भी राज्य को यह अतिरिक्त स्नेह मिलना चाहिए। चीन राष्ट्रपति के आगमन पर जिन मुद्दों पर सर्वाधिक चर्चा होनी चाहिए, वो है सीमा पर हो रही घुसपैठ पर। एक तरफ चीनी राष्ट्रपति भारत की यात्रा पर पहुंचे हैं और दूसरी तरफ हमारे ही सौ सैनिकों को वहां बंधक बना लिया गया। एक ओर जहां चीन से हम गुजरात में सहयोग ले रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सीमा पर खानाबदोशों के साथ मिलकर चीनी सेना हमारी ही जमीन से हमें उखाडऩे की कोशिश कर रही है। पिछले दिनों जापान यात्रा के दौरान जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की खिलाफत करने का संकेत दिया था, उससे आभास हुआ कि चीन को कड़ा जवाब देने की कोशिश होगी। इसके विपरीत सीमा पर मोदी सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। न तो पाकिस्तान की सीमा पर घुसपैठ रुक पा रही है और न ही चीन की सीमा पर। आखिर क्या कारण है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारें सीमा पर इतना कमजोर साबित होती है। निश्चित रूप से युद्ध करना न तो हमारे लिए लाभदायी है और न ही चीन-पाकिस्तान के लिए। इसके बाद भी हमें ठोस कदम तो उठाना ही पड़ेगा। इन दिनों जब चीनी राष्ट्रपति हमारे मेहमान है, तब उन्हें बताना चाहिए कि किस तरह से हमारे शहरों पर चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है? किस तरह हमारी सेनाओं को सीमा पर परेशान किया जा रहा है? यह स्पष्ट करना जरूरी होगा कि चीन को व्यापारिक दृष्टि से भारत की जरूरत है। चीन और भारत साथ मिलकर ही आगे बढ़ सकते हैं। अगर दोनों में खटास होगी तो दोनों का विकास रुकेगा। खुद चीनी राष्ट्रपति ने भारत के एक समाचार पत्र में इस आशय का आलेख लिखा है। हमारा बाजार चीन से कमजोर नहीं है, खरीद की शक्ति कम नहीं है। ऐसे में चीन को स्पष्ट करना चाहिए कि अगर वो हमारे देश में अपना उत्पाद बेचना चाहता है तो उसे हमारे से सौहार्दपूर्ण संबंध रखने होंगे। अगर चीन यह सोचता है कि वो दादागिरी करके आगे बढ़ सकता है तो इस मामले में प्रधानमंत्री को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
Sunday, September 21, 2014
चीनी को दिखानी होगी हमारी ताकत
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