बात से मन हल्‍का होता है

Wednesday, January 28, 2009

पुरस्‍कार ले लो, पुरस्‍कार

घर की छत्‍त पर गुनगुनी धूप का आनन्‍द ले रहा था कि नीचे से आवाज सुनाई दी 'पुरस्‍कार ले लो, पुरस्‍कार ' मैं चकित था, नीचे देखा तो एक गाडे वाला अपने गाडे में पुरस्‍कार लिए घूम रहा था और पुरस्‍कार बेच रहा था। मैं दौडता हुआ नीचे उतरा तो उससे पूछा 'भई क्‍या बेच रहे हो' उसने कहा ''कान खराब हो गए ? क्‍या सुनकर दौडकर आए हो। पुरस्‍कार बेच रहा हूं, लेना है तो बोलो नहीं अगली गली चलो।' मैंने कहा 'तुम पुरस्‍कार बेच कैसे सकते हो, यह तो सम्‍मान है और सम्‍मान तो दिया जाता है खरीदा थोडे जाता है।' उसने कहा ''नींद अगर खुली नहीं है तो पानी मुंह पर छिडक लो भाई जान'' यह वर्ष 2009 है पुरस्‍कार तो 2000 से पहले ही बिकने शुरू हो गए थे।'' आपको जैसा पुरस्‍कार चाहिए यहां हाजिर है। बस राष्‍टीय स्‍तर की मांग मत करना क्‍योंकि वो मेरे गाडे पर आ नहीं सकते। जिला स्‍तर पर हो या फिर राज्‍य स्‍तर पर पुरस्‍कार अपने पास उपलब्‍ध है। सर्टिफिकेट भी है अच्‍छे हाथ से नाम लिखवा लेना।'' मैं अभी कुछ समझ पाता इससे पहले उसने कहा ''आपको कुछ लेना तो है नहीं आप तो बस आवेदन करते जाओ, कभी कोई नहीं पहुंचा तो पुरस्‍कार आपको मिल जाएगा। ऐसा दिन आएगा नहीं और पुरस्‍कार खरीदने की तुम्‍हारी हैसियत नहीं।'' इतना कहते हुए वो आगे निकल गया और मैं एकटक उसे देखता रह गया। अचानक मुंह पर कुछ गिरने की आवाज आई, वो तकिया था और सामने पत्‍नी चाय हाथ में लिए गुर्रा रही थी, बोली ''चाय ठण्‍डी हो रही है, और फिर पुरस्‍कार पुरस्‍कार क्‍यों बडबडा रहे थे, अब तो 26 जनवरी भी निकल गई। तुम्‍हे कुछ नहीं मिला, तुम्‍हारे से अच्‍छा तो सामने वाले सरकारी कार्यालय का चपरासी है जो दिनभर पान की दुकान पर पीक थूकते थूकते पुरस्‍कार ले आया।'' मैं सोचने को मजबूर था। वो चपरासी पिछले कुछ दिन से साब के यहां चक्‍कर काट रहा था, माजरा क्‍या है अब समझ आ रहा था। उसे पुरस्‍कार मिल गया यानि वो ज्‍यादा काम करने वाला साबित हो गया। जिन्‍हें नहीं मिला, वो निठल्‍ले हैं कुछ ऐसा भी साबित हो गया। अखबार उठाकर देखा तो हर विभाग की एक सूची थी, जिनको मैं निठल्‍ला श्री के रूप में जानता था, उन सब के नाम छप रहे थे। कुछ तो ऐसे भी थे, जिनकी उम्र साठ के पास थी और पुरस्‍कार नवोदित की श्रेणी में ले रहे थे। पुरस्‍कार देने वाले अतिथि भी हंस रहे थे लेकिन मजबूर थे कि पुरस्‍कार तो देना ही है, चयन भले ही कैसा ही हुआ हो। साब से संबंध, मैमसाब को सलाम और साब के बेटे को प्‍यार किया तो पुरस्‍कार मिलेगा नहीं तो दूसरों की तरह बस सपने ही सपने दिखाई देंगे। इसी सोच के साथ मैंने 15 अगस्‍त का इंतजार शुरू कर दिया। (व्‍यंग्‍य)