बात से मन हल्‍का होता है

Wednesday, September 16, 2009

चीन को चांटा क्‍यों नहीं ?


आज राजस्‍थान पत्रिका के प्रथम पृष्‍ठ पर एक कार्टून छपा है। बहुत ही शानदार। बताया गया है कि एक तरफ प्रधानमंत्री जी ऑफिस से बाहर निकल रहे हैं और पास ही खड़े कार्टून आइकन कहते हैं ''अब कुछ करोगे भी या सिर्फ बोलते रहेंगे''। चीन की घुसपैठ के मामले में मुझे यह सटायर सही समय पर लगाया गया शॉट है। आखिर क्‍या कारण है कि हमारी सरकारें सिर्फ बोलने का काम करती है। बयान देने में हम सबसे आगे हैं और करने में सबसे पीछे। मुझे करगिल युद्ध का समय याद आता है। मेरे शहर बीकानेर से पाकिस्‍तान की सीमा काफी सटी हुई है। करगिल युद्ध के वक्‍त बीकानेर में सेना का डेरा था, हर तरफ हथियार, गोला बारूद देखकर लगा कि अब तक सीमा पर आरपार की लड़ाई होने वाली है। पाकिस्‍तान को एक बार फिर छठी या सातवीं का दूध याद आ जाएगा। हम लोग भी युद्ध की तैयारी में जुटे हुए थे। इस बीच एक साधारण से जवान से बातचीत करने पहुंच गए। उससे पूछा कि युद्ध में जा रहे हो, कहीं डर तो नहीं लग रहा। उसने तुरंत कहा, ''हां, डर लग रहा है।'' मैंने उसे धिक्‍कारते हुए कहा कि डर ही लग रहा है तो यहां क्‍यों बैठे हो। घर जाओ। उसने कहा ''यही तो डर लग रहा है कि लड़ने के लिए इतनी दूर आए हैं। कहीं प्रधानमंत्रीजी वापस लौटने के लिए नहीं कह दे। हालात ऐसे नहीं थे कि वापस लौटने जैसी स्थिति हो। पहाड़ों में चुनौती दे रहे पाकिस्‍तान को धोरों की धरती से मात देने की तैयारी कुछ दिन बाद ही बंद हो गई। युद्ध नहीं हुआ। सिर्फ मशक्‍कत हुई, बातें हुई और सैनिकों को इधर से उधर चक्‍कर काटने पड़े। न सिर्फ करगिल के वक्‍त बल्कि संसद पर हमले सहित अनेक मामलों में भी सेना हरकत में आती है लेकिन कोई हरकत करती नहीं है। उस जवान से बात करने के बाद लगा कि उसकी बाजू तो फड़क रही है लेकिन सरकार उस पर पाबंदी लगाए हुए हैं। अगर चीन हमारी जमीन पर कब्‍जा कर रहा है, खुद ही आगे बढ़ता जा रहा है तो हमें कार्रवाई करने के लिए क्‍या अमरीका से अनुमति लेनी होगी। हम क्‍यों अपने बचाव के लिए खुद कुछ नहीं करते। धीरे धीरे चीन आगे बढ़ता जाएगा और हम शांति शांति की रट लगाए रहेंगे। आज युद्ध आसान नहीं है, बहुत गंभीर मसला है लेकिन युद्ध न सही, उचित प्रतिउत्‍तर तो दे ही सकते हैं। कभी पाकिस्‍तान, कभी चीन, कभी नेपाल, कभी बांग्‍लादेश। सभी पड़ौसी देश मौका मिलने पर भारत से छेडखानी करने से नहीं डरते। क्‍या हम चीन में इतनी मजबूती से जवाब नहीं दे सकते कि छोटे प्‍यादे तो सुनकर ही किनारे हो जाए। हमारी सेना के हाथ बांधने के बजाय पाकिस्‍तान व चीन को जवाब देने की तैयारी होनी चाहिए। अतिक्रमण करने से पहले चीन ने किसी से पूछा नहीं था, विदेश नीति का भी ध्‍यान नहीं रखा था। फिर हम उनका ध्‍यान क्‍यों रख रहे हैं।
कहां घुसा है चीन
उत्‍तरी सिक्किम के कैरंग सहित अनेक क्षेत्रों में घुसपैठ । पाकिस्‍तान दो किलोमीटर लंबे फिंगर टिप क्षेत्र पर कब्‍जा करने की कोशिश में
क्‍या किया चीनी सेना ने
भारतीय जवानों पर गोलियां चलाई। दो जवान घायल।
क्‍या है नियम
नियमानुसार गोलीबारी करना अनुचित है। अगर भारत से कोई शिकायत है तो संबंधित माध्‍यम से ही यह
सूचना की जा सकती थी।

Sunday, September 6, 2009

अरे, सुधर जा पाकिस्‍तान


पिछले कुछ दिनों से पाकिस्‍तान के बारे में कुछ न कुछ पढ़ने को मिल रहा है। एक दिन पढ़ने में आया कि भारत से एक नाव पाकिस्‍तान में चली गई तो पाक सैनिकों ने काफी मेहनत करके भारतीय नाव को न सिर्फ बचाया बल्कि उसमें बैठे करीब तीन दर्जन लोगों को सही सलामत ससम्‍मान वापस भारत के हवाले भी किया। मन को सुकून मिला कि पाकिस्‍तान के साथ ऐसे रिश्‍ते कितने अच्‍छे होते हैं। इस बीच एक खबर आई कि पाकिस्‍तान ने अपने हथियारों की दिशा को भारत की तरफ कर दिया। सोचा कि यह तो रोज की खबर है कोई चिंता की बात नहीं। आज फिर यही बात समाचार पत्रों में प्रमुखता से है कि पाक के एटमी इरादे खतरनाक हो रहे हैं। इस बार अमेरीकी कांग्रेस की ताजा रिपोर्ट भारत के लिए चिंता का कारण बनी है। पाकिस्‍तान अपने परमाणु शस्‍त्रों की गुणवत्‍ता और संख्‍या बढ़ाने में लगा हुआ है। कांग्रेशनल रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक इस्‍लामाबाद के शस्‍त्रागार में लगभग साठ परमाणु बम है और जरूरत पड़ने पर इनकी संख्‍या बढ़ जाएगी। हालांकि रिपोर्ट पर संदेह का मजबूत कारण यह है कि पिछले सप्‍ताह ही यह संख्‍या सौ बता दी गई थी। पाकिस्‍तान के शस्‍त्रागार में भले ही कितने ही परमाणु हो, मुद़दा यह है कि पाकिस्‍तान बार बार इस मामले में हलचल क्‍यों करता है? क्‍या कारण है कि पाकिस्‍तान और भारत के बीच किसी न किसी मामले को लेकर अनबन बनी ही रहती है। दो अच्‍छे पड़ौसी का मन मुटाव होता है और न चाहते हुए भी इस तरह के विवाद उठते हैं तो एक दिन स्थिति विस्‍फोटक बन ही जाती है। अगर भारत और पाकिस्‍तान के बीच ऐसे हालात बने तो निश्चित रूप से स्थिति अत्‍यंत विस्‍फोटक होगी। सीमावर्ती क्षेत्र में रहने के कारण मैं युद़ध नहीं बल्कि इसकी तैयारी मात्र की कल्‍पना से 'भयभीत' हो जाता हूं। सोचता हूं कि दुनिया के नक्‍शे से यह देश साफ हो जाएगा। पाकिस्‍तान का नाम लेने वाला कोई नहीं रहेगा। मैंने करगिल और इसके बाद हाल ही में वार की आशंका मात्र पर बनी परिस्थितियों को नजदीक से देखा है।
चिंता पाकिस्‍तान में भी कम नहीं है
''पाकिस्‍तानंस न्‍यूक्लियर वेपन्‍स - प्रोफेशनल एंड सिक्‍योरिटी इश्‍यू'' शीर्षक वाली रिपोर्ट में पाकिस्‍तान की चिंता भी साफ दिखाई देती है। पाकिस्‍तान को भय है कि भारत की नई शस्‍त्र प्रणाली पाकिस्‍तान के लिए काफी घातक साबित हो सकती है। पाकिस्‍तानी विदेश मंत्रालय ने भी इस मामले में काफी गंभीरता से टिप्‍पणी की है। यानि दोनों तरफ हालात एक जैसे हैं और दोनों तरफ से अगर कहीं भी गड़बड़ हुई तो चिंता हो जाएगी।
पाक के लिए शस्‍त्र के बजाय अर्थ की चिंता जरूरी
वैसे पाकिस्‍तान की ही एक रिपोर्ट में वहां की आर्थिक स्थिति के बारे में समीक्षा की गई है। जो काफी चिंताजनक है। पाकिस्‍तान को वर्तमान परिस्थितियों में अपने शस्‍त्रगारों की चिंता छोड़कर अपने देश की आर्थिक स्थिति पर चिंतन और मनन करना चाहिए। सोचना चाहिए कि युवाओं को किस तरह दुनिया से जोड़ा जाए। किस तरह देश की आर्थिक स्थिति को सुधारा जाए। मैं एक बार फिर कहना चाहूंगा कि पाकिस्‍तानियों में कोई गड़बड़ नहीं है, वहां के लोग अच्‍छे हैं, मैं छह दिन तक उनके साथ एक ही कमरे में रहा हूं, गड़बड़ है तो पाकिस्‍तानी नेताओं के दिमाग में। मेरे साथ नेपाल में रहे पाकिस्‍तानी पत्रकार शोएब भी मानता था कि पाकिस्‍तानी नेता ही देश का कबाड़ा करने में जुटे हुए हैं।
पाकिस्‍तानी नेताओं की ओर से शस्‍त्रों की सार संभाल पर अंत में एक ही बात कहूंगा
इनसे न तलवार उठेगी, न खंजर। ये बाजू हमारे आजमाए हुए हैं।

Wednesday, September 2, 2009

धन्‍यवाद ब्‍लॉगर साथियों


'ये ब्‍लॉग पर पाठक कब आएंगे' मेरी कल की पोस्‍ट पर रिकार्ड तोड़ पाठकों के आगमन और बेहिसाब (वैसे 32) टिप्‍पणियों के लिए आप सभी का आभार। आप एक बार फिर इस पोस्‍ट पर जाएं और देखें कि टिप्‍पणी करने वाले 32 पाठकों में ब्‍लॉगर कितने हैं और पाठक कितने? यह भी सही है कि स्‍वयं ब्‍लॉगर सबसे बड़ा पाठक है लेकिन हकीकत यह है कि ब्‍लॉगर के अलावा पाठक जब तक नहीं आएंगे तब तक हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत को आगे ले जाना मुश्किल होगा। इसके लिए प्रयास होना चाहिए। अधिकांश टिप्‍पणियों से यह प्रतीत हुआ कि मेरे ब्‍लॉग पर पाठक नहीं आ रहे। काफी हद तक यह सही है कि लेकिन मेरा चिंतन अपने ब्‍लॉग तक सीमित नहीं है। मुझे अपेक्षा थी कि तमाम साथी हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत से लोगों को जोड़ने के लिए कुछ सुझाव देंगे। अधिकांश ने यही कहा कि लिखते रहिए पाठक अपने आप आएगा। लगातार लिखने वाला और बेहतर लिखने वाले के पास पाठक आ रहे हैं। समीरजी, आशीषजी, अविनाश वाचस्पति, सिद्धार्थजी, प्रवीणजी, बी एस पाबला , अलबेलाजी AlbelaKhatri.com वर्षाजी varsha इसके उदाहरण है। अगर आप गुगल विश्‍लेषण में देखेंगे तो पता चलेगा कि आपकी पोस्‍ट पर वही पाठक आ रहा है जो पिछले लम्‍बे अर्से से आपसे जुड़ा हुआ है। नए पाठक बहुत कम है। मेरा चिंतन है कि कुछ ऐसा होना चाहिए कि ब्‍लॉग पर नियमित रूप से लोग आएं। जिस व्‍यक्ति के पास इंटरनेट कनेक्‍शन है वो ब्‍लॉग की दुनिया में दस्‍तक जरूर दें। विशेषकर हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत पर उसका आगमन हो। हम अपने आसपास के ही साथियों को देखेंगे तो पता चलेगा कि ब्‍लॉग के बारे में जानकारी नहीं है। क्‍यों नहीं हम ब्‍लॉग पर इस तरह का नवाचार करें कि सच में पढ़ने वाला पाठक उस पर आए। मेरी चिंता में इस तथ्‍य को भी शामिल किया जाए कि चालीस पार कर चुके अधिकांश लेखक और पाठक ब्‍लॉग से दूर है क्‍योंकि कम्‍प्‍यूटर उनके लिए बहुत टेडी खीर है। हम ऐसे लेखकों को कम्‍प्‍यूटर सीखने के लिए प्रेरित करें और उनकी रचना को पोस्‍ट करने में सहायता करें। मेरे साथी सिद्वार्थ यह काम कर रहे हैं। मेरे जैसे एक दो नहीं बल्कि पांच सात लोगों को उसने ब्‍लॉग को बुखार चढ़ाया। अगर हम सब मिलकर दो चार लोगों को ही इस दुनिया में लाने का प्रयास करेंगे तो यह सपना सच होगा।
विज्ञापन क्‍यों नहीं
पुराना राग है फिर भी अलाप देता हूं कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के आगे नहीं बढ़ने का एक कारण इसमें विज्ञापन नहीं होना भी प्रतीत होता है। क्‍या कारण है कि दुनियाभर में भारतीय विद्यार्थी कम्‍प्‍यूटर तकनीक में डंका बजा रहे हैं और हमारे ही ब्‍लॉग विज्ञापन से वंचित है। क्‍यों गुगल हिन्‍दी ब्‍लॉग को अछूत मानकर विज्ञापन से किनारे कर देता है। क्‍या ऐसा कोई ब्‍लॉग माध्‍यम विकसित नहीं हो सकता, जिससे कि हिन्‍दी के ब्‍लॉगर भी विज्ञापन प्राप्‍त कर सकें। इस दिशा में सभी को मिलकर सोचना होगा। मुझे नहीं पता कि हिन्‍दी ब्‍लॉगर से गुगल को या अन्‍य किसी 'गल' को कितना लाभ हो रहा है, लेकिन इतना स्‍पष्‍ट है कि नुकसान बिल्‍कुल नहीं है।
फिर से धन्‍यवाद कि आप मेरे ब्‍लॉग पर पधारे। मेरे ऊपर आप सभी की कृपा हुई। आभार। संभव हो तो इस बारे में सुझाव अवश्‍य दें कि आगे क्‍या कर सकते हैं। मैं समीरजी को विश्‍वास दिलाता हूं कि बीकानेर से इसकी शुरूआत जरूर होगी। हम जल्‍दी ही बीकानेर में एक कार्यशाला आयोजित करने जा रहे हैं जिसमें युवा वर्ग को ब्‍लॉग के बारे में जानकारी दी जाएगी। शायद यह प्रयास कुछ सार्थक हो।

Tuesday, September 1, 2009

ये ब्‍लॉग पर पाठक कब आएंगे?


पिछले कुछ समय से सोच रहा हूं कि आखिर ब्‍लॉग पर पाठक आने कब शुरू होंगे ? वर्तमान में तो ब्‍लॉग पर लेखक ज्‍यादा है पाठक कम। मैं पिछले एक वर्ष से ब्‍लॉग लिखकर मन की भड़ास निकाल रहा हूं। इस एक वर्ष में मैंने ब्‍लॉग पर आ रहे आलेखों और पाठकों की प्रतिक्रियाओं को देखकर अपना आकलन किया है। संभव है कि यह आकलन पूरी तरह सतही हो लेकिन वाल्‍तेयर के पद चिन्‍हों पर चलते हुए अभिव्‍यक्ति की अपनी स्‍वतंत्रता को कायम रखते हुए कहना चाहूंगा। हिन्‍दी ब्‍लॉग पर अब तक पाठकों के आने का सिलसिला शुरू ही नहीं हुआ। जो लोग सिर्फ पढ़ने के लिए आ रहे हैं, वो या तो बड़े ब्‍लाग जैसे कि अमिताभ बच्‍चन का बिग अड़डा पर ही आ रहे हैं। कुछ आलोचक व समालोचक के पाठक जरूर आ रहे हैं लेकिन शेष के लिए हम ही पाठक है और हम ही लेखक। एक दूसरे की हौंसला अफजाई और ब्‍लॉग के बारे में पढ़ने और उसे संवारने की कवायद ज्‍यादा है। जो ब्‍लॉगर किसी के ब्‍लॉग में नयापन देने के लिए कुछ न कुछ लिंक दे रहे हैं, उनके पाठक भी ज्‍यादा है और फॉलोवर भी। आशीषजी का ब्‍लॉग इसका उदाहरण है। निसंदेह उन्‍होंने और उनके जैसे दूसरे मित्रों ने सभी ब्‍लॉगर्स को हुलिया सुधारने और सलीके से ब्‍लॉग बनाना सिखाया है। कुछ ब्‍लॉग नौटंकी जैसे भी है, जिन पर मैटर के नाम पर कुछ नहीं है, हंसी मजाक जरूर है। हां हिन्‍दी चैनल मीडिया से जुड़े कुछ पत्रकारों के ब्‍लॉग जरूर पठनीय होते हैं। उनमें न सिर्फ विचार है बल्कि जानकारियों का खजाना भी है। अधिकांश ब्‍लॉगर नियमित लेखन के बजाय कुछ मैटर हाथ लगने पर अपनी भड़ास निकाल देते हैं, जी हां, ठीक मेरी तरह। अगर आप ब्‍लॉग दुनिया के बारे में कुछ लिख रहे हैं तो पाठक खूब आ जाएंगे क्‍योंकि स्‍वयं ब्‍लॉगर ही उसे पढ़ते हैं। यह मुझे तब पता चला जब मैंने पिछले दिनों आशीष जी को बिन मांगी नसीहत दे डाली। इतनी संख्‍या में लोग पहुचेंगे, यह मुझे ज्ञात नहीं था। इसके बाद पिछली तीन पोस्‍ट भाजपा पर लिखी लेकिन रेस्‍पोंस बहुत कमजोर नहीं, नगण्‍य है। मैंने सोचा कि यह मेरी लेखनी की कमजोरी है कि लोग मेरे ब्‍लॉग पर नहीं आ रहे। बाद में दूसरे लेखकों के ब्‍लॉग भी देखने शुरू किए। मैं यहां किसी के नाम का उल्‍लेख नहीं कर रहा लेकिन आप अपनी किसी गंभीर पोस्‍ट के पाठकों के बारे में विश्‍लेषण प्राप्‍त करें। पता चलेगा कि उन पर पाठक सबसे कम आए हैं। मुझे लगता है जिस गति से हम ब्‍लॉग पर पोस्‍ट डाल रहे हैं, उसी गति से इसके स्‍तर में सुधार के साथ साथ पाठकों की संख्‍या में वृद्वि करनी होगी। कई बार पढ़ता हूं कि ब्‍लॉगर्स मीट का आयोजन होता है। ऐसी मीट के बजाय हम आम लोगों को ब्‍लॉग के बारे में जानकारी दे ताकि लोग कुछ पढ़ने के लिए ब्‍लॉग पर क्लिक करें। विशेषकर उन लोगों को जानकारी देनी चाहिए, जो इंटरनेट पर तो रोज बैठते है लेकिन ब्‍लॉग नहीं देखते। मैंने यह भी महसूस किया है कि प्रमुख लेखक अब भी ब्‍लॉग पर अपना आलेख नहीं देते। इसका एक कारण तो वरिष्‍ठ लेखकों, चिंतकों व समालोचकों को नेट का कम ज्ञान हो सकता है दूसरा इस ब्‍लॉग दुनिया के प्रति उनकी अरुचि। मेरे शहर बीकानेर में ही डॉ नन्‍दकिशोर आचार्य, हरीश भादाणी, मालचंद तिवाड़ी, अनिरुद्व उमट सहित ऐसे दर्जनभर लोग हैं, जिन्‍हें पढ़ने की चाहत है लेकिन ब्‍लॉग की जानकारी नहीं। जो ब्‍लॉग रेटिंग तय कर रहे हैं, उन्‍हें भी विषय वार रेटिंग देनी चाहिए। खेल पर किसने अच्‍छा लिखा, साहित्‍य पर किसने बाजी मारी, समसा‍मयिक विषयों पर किसकी कलम तीखी रही। इससे अच्‍छे पाठकों को जोड़ने में सफलता मिल सकती है। ऐसे लोगों को ब्‍लॉग पर जोड़ने के लिए प्रयास होने चाहिए। भले ही उनसे अनुमति लेकर कोई भी आलेख को अपने ब्‍लॉग पर देना शुरू करें। अंत में कहना चाहूंगा कि ब्‍लॉगवाणी में जो रेटिंग आ रही है उसमें प्रथम दस ब्‍लॉग की सामग्री देखकर सभी यह चिंतन करें कि कैसे ब्‍लॉग की दुनिया को नया मोड़ दिया जा सकता है।