बात से मन हल्‍का होता है

Thursday, March 5, 2009

यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र' की बस यादें

मुझे लगता है ब्‍लॉग जगत में साहित्‍यकारों का भारी जमावडा है। उन्‍हीं साहित्‍यकारों के लिए एक दुखद समाचार है कि हिन्‍दी जगत के विख्‍यात कथाकार यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र' अब दुनिया में नहीं रहे। 'चंद्र' का यहां सेप्‍टीसीमिया रोग के कारण निधन हो गया। 'चंद्र' हिन्‍दी जगत के उन चंद कथाकारों व साहित्‍यकारों में शामिल थे, जिनका जीवन सिर्फ और सिर्फ लेखन को समर्पित रहा। आज जब अधिकांश लेखक अपना घर चलाने के लिए लेखन के साथ ही या तो सरकारी नौकरी करते है या फिर कोई अन्‍य कामकाज। ऐसे में चंद्र सिर्फ लेखन से जुडे रहे। किताब लिखते, बाजार में बिकती और चंद्र का घर चलता। 'चंद्र' का नाम हर कहीं अंकित है। यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र' के बारे में कुछ जानकारी इस प्रकार है
उपन्‍यास - सन्‍यासी और सुंदरी, दीया जला दीया बुझा, हजार घोडों पर सवार, कुर्सी गायब हो गई, एक और मुख्‍यमंत्री, खम्‍मा अन्‍नदाता, पराजिता, खून का टीका, ढोकन कुंजकली, गुलाबडी, सपना, मोहभंग आदि
कहानी संग्रह - मेरी प्रेम कहानियां, श्रेष्‍ठ आंचलिक कहानियां, विशिष्‍ठ कहानियां, जमीन का टुकडा, जंजाल तथा अन्‍य कहानियां, महापुरुष आदि अनेक कथासंग्रह
नाटक - ताश का घर, महाराजा शेखचिल्‍ली, मैं अश्‍वत्‍थामा, चुप हो जाए पीटर, चार अजूबे, आखिरी पडाव, जीमूतवाहन, महाबली बर्बरिक, 
सम्‍मान - राजस्‍थान पत्रिका सृजन पुरस्‍कार की श्रेणी में वर्ष 1996 में 'गुळजी गाथा' पर पुरस्‍कृत,  साहित्‍य महोपाध्‍याय, साहित्‍यश्री,  डॉ राहुल सांकृत्‍यायन, साहित्‍य महोपाध्‍याय
विशेष - उनकी रचना 'हजार घोडों पर सवार' पर टीवी धारावाहिक बना, 'लाज राखो राणी सती' नामक पहली राजस्‍थानी फिल्‍म भी 'चंद्र' के लेखन का परिणाम थी, गुलाबडी, चकवे की बात और विडम्‍बना पर टेलीफिल्‍म बनी।