बात से मन हल्‍का होता है

Tuesday, May 11, 2010

लप लपा लप


लप लपा लप । एक ही शब्‍द को जोडकर बनाया गए ये तीन शब्‍द अजीब है। आप बोलेंगे तो जीभ और हाठों की ऐसी दौड शुरू होती है कि रुकने का नाम नहीं लेती। दरअसल, यह शब्‍द बना ही ऐसे लोगों के लिए है जो ज्‍यादा बोलते हैं, बोलते वक्‍त जिनके मन, मस्तिष्‍क और दिमाग के बीच का संतुलन गडबडा जाता है। अगर आप मेरा इशारा समझ रहे हैं तो हम रमेश जयराम के बारे में बात कर रहे हैं। रमेश जयराम हमारे केंद्रीय मंत्री है। मंत्री है इसलिए उन्‍हें कुछ भी बोलने की छूट है। रोके भला कौन? अमरीका से भारत आने वाले मंत्री इतनी सधी हुई बात करते हैं कि कभी कोई विवाद नहीं होता। वो पाकिस्‍तान में कुछ बोलते हैं और भारत में कुछ और। शायद अपने देश से समझकर आते हैं कि हमें कहां क्‍या बोलना है लेकिन हमारे मंत्री है कि कहीं भी कुछ भी बोलने में कोई गुरेज नहीं करते। इनका मुंह तो बस अपनी पार्टी में नहीं खुलता बाकी जगह तो इनकी जीभ लप लपा लप। अब कोई जयराम रमेश से पूछे कि पर्यावरण के मंत्री होकर दूसरे मंत्रालय के बारे में टिप्‍पणी क्‍यों कर रहे हैं और वो भी पराए घर में, ऐसे पराए घर में जो हर हाल में भारत को नीचे दिखाने की कोशिश कर रहा है। अगर कुछ बोलना ही था तो मनमोहनजी के आगे कहते, सोनिया के आगे बोलते, वो नहीं सुनते तो देश की मीडिया के आगे बोलते। देश की इज्‍जत का तो ख्‍याल किया होता। जो व्‍यक्ति अपनी जीभ पर नियंत्रण नहीं रख सकता, वो देश के पर्यावरण का कैसे ध्‍यान रखेगा। यह बीमारी अकेले जयराम रमेश की नहीं है, कुछ दिन पहले ही सत्‍ता से बेदखल हुए शशि थरूर को भी यही बीमारी है। वो अपनी भडास ट़विटर पर निकालते थे, मन में आई तो माइक के आगे भी लप लपा लप कर लेते थे। उन्‍होंने परिणाम भुगत लिया। आजकल उनकी लप लपा लप बन्‍द है। यह दो उदाहरण तो कांग्रेस के थे लेकिन इनका विरोध कर रही और मंत्री से त्‍याग पत्र मांग रही भाजपा के नेता भी लप लपा लप करने में कहां पीछे है। अब लालक़ष्‍ण आडवाणी की पूरी जिंदगी कांग्रेस को कोसते निकल गई, पाकिस्‍तान के मुद़दे पर खूब कोसा, देश के बंटवारे के लिए नेहरू को कोसा लेकिन इसी बंटवारे के सूत्रधार जिन्‍ना की मजार पर पाकिस्‍तान में पहुंचे तो उनकी भी जीभ लप लपा लप करने लगी। तब तो भाजपा के किसी नेता उनका त्‍यागपत्र नहीं मांगा था। हमारा तो सिर्फ इतना ही मानना है कि देश के मंत्रियों को मंत्री होने का अहसास होना चाहिए, पद की गरीमा का भी पता होना चाहिए। अब देश के प्रधानमंत्री के पास यही काम रह गया कि वो अपने मंत्रियों को बुलाकर समझाते रहे।