बात से मन हल्‍का होता है

Thursday, February 5, 2009

महेंद्र सिंह धोनी सिर्फ खिलाडी नहीं है ?


आखिर महेंद्र सिंह धोनी में ऐसा क्‍या है कि हम लगातार नौ एक दिवसीय मैच जीत गए। 20'ट़वेंटी का वर्ल्‍ड कप जीत गए। सिर्फ धोनी ही नहीं बल्कि उसके साथ दूसरे खिलाडी भी जमकर रन बना रहे हैं। जिस भारतीय टीम को केन्‍या तक से हार का मुंह देखना पडा और गुरु ग्रेग तक सुधारने में विफल हो गए। उस भारतीय टीम की दिशा और दशा रांची के इस खिलाडी ने कैसे बदल दी ? इस सवाल के पीछे किसी तरह की चिंता नहीं है बल्कि चिंतन की आवश्‍यकता है। दरअसल धोनी ने टीम में अलग माहौल को स्‍थापित किया है। यही गौतम गंभीर, वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंडूलकर पहले भी थे लेकिन कभी कभार एक आध का बल्‍ला चलता था। अब तो सभी का चल रहा है। कभी इसका तो कभी उसका। पुराना नहीं तो नया खिलाडी ही कमाल कर जाता है। कभी कभार ही शॉट मारने वाले युवराज सिंह भी अब अनवरत अपना कमाल दिखा रहे हैं।  दरअसल हमारी टीम दुनिया में सर्वश्रेष्‍ठ है। टीम प्रबंधन की खामियों के कारण ही अब तक हारते रहे हैं, अपने चहेते खिलाडियों को टीम में स्‍थान देने की सोच के कारण मैच हारते गए। अगर शुरू से ही बेहतर खिलाडियों को आगे लाने की सोच रहती तो दक्षिण अफ्रिका के  बजाय भारत नम्‍बर एक पर होता। धोनी ने टीम में प्रवेश के बाद से माहौल सुधारने का काम किया बिना कप्‍तान महज विकेट कीपर के रूप में धोनी ने पाकिस्‍तान के खिलाफ खेलते हुए साफ कर दिया कि तनाव में खेलना उसकी नीयती में नहीं है। असर भी साफ दिखाई दिया कि विपरीत परिस्थिति में से भी भारत मैच जीता। मुझे याद है ऐसा भी वक्‍त था जब भारत अच्‍छा स्‍कोर करने के बाद भी पाकिस्‍तान से दबाव में आ जाता। अंतिम चार पांच ओवर में पाकिस्‍तानी ऐसे हावी होते कि हम मैच हार जाते। धोनी ने ही पाकिस्‍तान के खिलाफ हौव्‍वा खत्‍म किया। आज पाकिस्‍तान की टीम पर दबाव रहता है, अच्‍छा स्‍कोर करके भी पाकिस्‍तान अंतिम ओवर में मैच भारत की झौली में डाल जाता है। इसका श्रेय भी धोनी को है कि अब अंतिम ओवर का भय खत्‍म हो गया। पिछले दिनों जब आ‍स्‍टेलिया की टीम भारत आई तो भारतीय खिलाडियों का व्‍यवहार हमारे ही देश के सुसंस्‍कृत लोगों को रास नहीं आया होगा लेकिन 'टिट फॉर टेट' में विश्‍वास करने वालों को अच्‍छा लगा। कप्‍तान धोनी का ही हौसला है कि उसके खिलाडी आस्‍टेलियाई खिलाडियों के सामने गुर्राने से अब गुरेज नहीं करते। उल्‍टे अब वो अपनी ही अदाकारी के हथियार से नुकसान उठा रहे हैं। निश्चित रूप से भारतीय टीम को आस्‍टेलियाई अंदाज में मैदान में नहीं खेलना चाहिए लेकिन उसकी चाल सीधी करने के लिए ठीक रहा। नए खिलाडियों को अवसर देने में भी धोनी ने ही सर्वाधिक कमाल किया। श्रीलंका से तीन मैचों की श्रंखला जीतने के बाद लगातार नौ वन डे जीतने का रिकार्ड बनाने की धुन सवार करने के बजाय धोनी ने नए खिलाडियों को अवसर दिया। कोई भी उम्‍मीद से निकम्‍मा नहीं निकला। हर किसी ने अपना श्रेष्‍ठतम किया और मैच जीत गए। मुरलीधरन ने भले ही विश्‍वस्‍तरीय रिकार्ड बना दिया लेकिन भारतीय टीम ने श्रीलंका को जश्‍न मनाने की छूट नहीं दी। यह धोनी का ही कमाल है कि अब भारतीय क्रिकेट प्रे‍मी दक्षिण अफ्रिका के खिलाफ मैच श्रंखला देखने को बेताब है। एक बार भी लग रहा है कि  विश्‍व कप का कोई दावेदार है तो वो भारत है। दरअसल धोनी खिलाडी नहीं है, विचारधारा है, जीतने की जिद है, कुछ कर गुजरने की ललक है, बस आगे बढने की सोच है, स्‍वयं को श्रेष्‍ठ समझने की समझ है। निश्चित रूप से हम स्‍वयं को धोनी मानकर सरलता से अपने लक्ष्‍य की ओर आगे बढे तो सफल हो सकते है। cartoon by www.daijworld.com