बात से मन हल्‍का होता है

Tuesday, July 28, 2015

एक और कलाम कब आएगा

जब स्कूल में पढ़ते थे तो गुरुजन कहते थे कि आप में ही कोई गांधी होगा, कोई नेहरु होगा, कोई इंदिरा और कोई सरोजनी नायडू होगी। तब तक देश में इतने ही महान लोग थे। आज जब पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम हमारे बीच नहीं है तब लगता है कि शायद हमें अब अपने बच्चों को कहना होगा कि कल के कलाम शायद वो ही होंगे। और यह देश के भविष्य की जरूरत भी है कि कोई न कोई कलाम फिर पैदा हो। एक बार फिर मिसाइल मैन देश में आए ताकि हम न सिर्फ सामरिक दृष्टि से बल्कि बौद्धिक दृष्टि से भी श्रेष्ठतम होने का दावा कर सकें। वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने शोक संदेश में कहा कि कलाम आम लोगों के राष्ट्रपति थे। उनका यह कहना भर ही साबित कर गया कि मुखर्जी स्वयं मानते हैं कि कलाम उनसे अधिक लोकप्रिय थे। दरअसल, कलाम राजनीतिज्ञ थे ही नहीं, इसलिए न तो कांग्रेसी और न भाजपाई किसी के बीच उनका विरोध नहीं है। कलाम ने देश को राजनीतिक रूप से विभक्त करने का कोई पाप किया ही नहीं। उन्होंने देश में राजनीतिक विभक्तता को खत्म करने की कोशिश की। कलाम ही है, जिन्होंने राष्ट्र को यह गौरव दिलाने का प्रयास किया कि हम दुनिया की सामरिक शक्तियों में एक है। पाकरण में जो कुछ हुआ, उसकी कानों कान खबर किसी को नहीं हुई, लेकिन जिस दिन भारत ने कलाम के नेतृत्व में पोकरण में परमाण परीक्षण किया, उसी दिन दुनिया हमारा लोहा मान गई। हकीकत है कि मिसाइल मैन कलाम के दम पर ही भारत को यह गौरव हासिल हो सका। मुझे कलाम से साक्षात् होने का अवसर मिला तो उससे भी बड़ा गौरव का सवाल था कि मुझे उनसे कुछ सवाल करने का मौका भी मिला। मैंने कलाम से सवाल किया कि 'भारत एक विकासशील देश है, ऐसे में हमें करोड़ों अरबों रुपए क्या चांद को तक पहुंचने के लिए खर्च करने चाहिए।Ó इस पर कलाम ने मुझे कहा कि आप यह मत सोचिए कि यह धन बेकार जा रहा है, हम चांद पर पहुंचने के लिए इतनी राशि खर्च नहीं कर रहे हैं, बल्कि चांद पर पहुंचकर कई तरह की सेटेलाइट, कई तरह की नई तकनीक इजाद करने की सफलता की ओर बढ़ते हैं। यह पैसा बर्बाद नहीं हो रहा, काम आ रहा है। सही कहा था कलाम साहब ने कि देश को बड़े लक्ष्य बनाने होंगे, तभी हम छोटे काम आसानी से कर सकेंगे। उन्होंने परमाणु परीक्षण कर इतना बड़ा काम कर दिया कि अब कई बड़ी शक्तियां तो हमारी ओर छोटी नजर से देख ही नहीं सकती।  पाकिस्तान को तो मानो उसी दिन से यह डर सताने लगा है कि भारत दुनिया की बड़ी शक्तियों में एक है। सच में देश को एक और कलाम की जरूरत है, देश को एक और मिसाइल मैन की जरूरत है। निश्चित ही देश को यह कलाम जरूर मिलेगा।

Friday, July 24, 2015

राजनीति की भेंट चढ़ा मानसून सत्र

संसद में मानसून सत्र शुरू हो गया है। उम्मीद की जानी चाहिए थी कि देश की आम अवाम के लिए इस सत्र में कुछ चर्चा होगी। अरबों रुपए खर्च करके देश की जनता ने जिन सांसदों को संसद में भेजा है, वो उसी गरीब और आम आदमी के बारे में कुछ सोचेगी। इसके विपरीत देश की संसद में सिर्फ और सिर्फ राजनीति हो रही है। जब कांग्रेस सत्ता में थी तो भाजपा हर बार कोई न कोई बहाना ढूंढकर कांग्रेस को बदनाम करने की कोशिश करती, संसद को बाधित करती ताकि कोई अच्छा काम नहीं हो सके, कोई बुरे काम पर रोक नहीं लग सके। आज सिक्के का दूसरा पहलू सामने आ गया है। जब सत्ता में भाजपा है और विपक्ष में कांग्रेस। हालात अब भी वैसे ही है, जैसे पहले थे। आज कांग्रेस नहीं चाहती कि किसी तरह का कोई काम संसद में हो। हर हाल में कांग्रेस यह चाहती है कि संसद ठप रहे, कोई भी चर्चा नहीं हो, भूमि विधेयक बिल पारित नहीं हो सके, हंगामा इतना बरपे कि लोकसभा और राज्यसभा दोनों के अध्यक्ष के पास बहस स्थगित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं हो। कांग्रेस अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में अब तक सफल रही है, सफलता का एक पैमाना यह भी है कि सत्ता पक्ष स्वयं कांग्रेस के खिलाफ संसद के बाहर धरने पर बैठने को मजबूर हो गया है।
क्या इस देश ने इसी हालात के लिए सांसदों को चुनकर संसद में भेजा है कि वो वहां पर किसी मुद्दे पर चर्चा करने के बजाय सिर्फ हो हल्ला करें। इसमें कोई शक नहीं है कि नरेंद्र मोदी इस पूरे मामले में मौन रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि मन मोहन सिंह की चुप्पी को पूरे चुनाव अभियान में हथियार के रूप में उपयोग करने वाले स्वयं भी मौनेंद्र कुमार हो गए हैं। आखिर क्या कारण है कि वो मीडिया के छह सवालों पर छह बार गर्दन घुमाते हैं और फिर आगे निकल जाते हैं। आखिर क्या कारण है कि दुनियाभर में स्वयं को शक्तिशाली और दबंग प्रधानमंत्री साबित करने की कोशिश में जुटा हमारा नेता आज चुप होकर बैठ गया है। देश की जनता ने नरेंद्र मोदी में एक शेर देखा था, जो हर वक्त दहाड़ सकता है। 'न खाऊंगा, न खाने दूंगाÓ जैसा बयान उनकी दहाड़ ही थी, लेकिन आज वो शेर के बजाय मौन हो गए हैं। मोदी को सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान के मुद्दे पर अपनी बात कहनी चाहिए। उन्हें यह विश्वास होना चाहिए कि देश की आधी से अधिक जनता उनके बयान को ही सच मान लेगी। अगर वो कहेंगे कि तीनों सही थे तो उनके अंधभक्त मान लेंगे कि वो सही है। लेकिन अगर चुप रहेंगे तो उनके अंध भक्तों को भी जवाब देना मुश्किल हो रहा है। निश्चित रूप से मोदी और उनकी टीम इस मामले में बेकफुट पर है। यह भी सच है कि कांग्रेस इस पूरे मामले में दोषी है। कांग्रेस को सुषमा,वसुंधरा और शिवराज के नाम पर भाजपा को घेरने के लिए मानसून सत्र का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए था। इसके लिए वो सड़क पर आंदोलन कर सकती है, अदालत में जा सकती है। पचास तरीके हैं। देश के लिए सबसे कीमती मानसून सत्र को राजनीति की भेंट चढ़ाकर कांग्रेस ने आखिर किस राजधर्म का पालन किया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों को राजनीति के बजाय राजधर्म पर ध्यान देना चाहिए।