बात से मन हल्‍का होता है

Tuesday, December 30, 2008

एक अनूठा क्रिसमस

निश्चित रूप से क्रिसमस पर अभी लिखने का वक्‍त नहीं है, क्रिसमस का त्‍यौहार बीते करीब एक सप्‍ताह हो रहा है, लेकिन यहां मैं इतने विलम्‍ब से उल्‍लेख कर रहा हूं क्‍योंकि मेरे बेटे ने क्रिसमस आज ही मनाया, वो अपने नाना के घर था, इस बीच क्रिसमस का त्‍यौहार आया और चला गया, चूंकि मैं क्रिश्‍चयन धर्म से इतना जुड़ाव नहीं रखता, इसलिए क्रिसमस की किसी भी औपचारिकता को निभाने का सवाल नहीं उठता, आज दोपहर बाद मैं जब घर में घुसा तो सभी बच्‍चे मेरे छोटे कमरे में जमघट लगाए हुए थे, मेरे बेटे मयंक ने सुबह मेरे से मोरपंख पौधे का गमला नीचे से ऊपर क्‍यों मंगवाया, यह भी मेरी समझ में अब आया, उसने मोरपंख पौधे के चारों और दीपावली पर सजावट के काम आने वाली छोटी छोटी लाइटस का घेरा डाला, रंग बिरंगी लाइट़स के बीच उसने अपनी जन्‍मदिन के बचे हुए स्‍टार को लगाया, कुछ गुब्‍बारे भी सजाए, वो अपने साथियों के साथ जिंगल बैल जिंगल बैल गा रहा था, उसके साथी बड़े जोश के साथ क्रिसमस के पांच दिन बाद की इस क्रिसमस का आनन्‍द ले रहे थे, दरअसल मेरा बेटा शहर के एक क्रिश्‍चयन स्‍कूल में पढ़ता है, वहां क्रिसमस का त्‍यौहार अन्‍य त्‍यौहारों की तरह बड़े उत्‍साह से मनाया जाता है, उसके साथी ऐसी स्‍कूल नहीं पढ़ते इसलिए उन्‍हें क्रिसमस का ज्‍यादा ज्ञान नहीं था, अपने धर्म से हटकर उसका यह उत्‍साह मुझे रास आया, मैं यह सोचकर अब स्‍वयं को छोटा महसूस करता हूं कि यह मेरा धर्म है और वह उसका, बेटे की उम्र अभी सात वर्ष है, इसलिए वो इस सोच के साथ दुनिया में विचरण नहीं कर रहा,  चाहता हूं कि भविष्‍य में भी वो इसी तरह दीपावली होली के साथ ईद व क्रिसमस का त्‍यौहार भी मनाए