बात से मन हल्‍का होता है

Thursday, August 13, 2009

अमरीका फिर पाक के साथ


आखिर दुनिया की क्‍या मजबूरी है कि वो अमरीका की बकवास को सुनता है। चलो दुनिया की छोड़ो हम तो घर की बात करते हैं। अमरीका में ऐसा क्‍या है जो हम उसकी बात न सिर्फ सुनने के लिए बल्कि मानने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं। अब पिछले दिनों शर्म अल शेख की घटना को ध्‍यान में रखें तो खुद ही शर्मसार हो जाते हैं। अमरीका ने पाकिस्‍तान को हजार बार चेतावनी दे दी कि वो आतंकवाद से किनारा करें नहीं तो अमरीका उसे सहायता बंद कर देगा। इस बीच अपनी चिर परिचित शैली में एक बार फिर अमरीका ने साफ कर दिया कि वो पाकिस्‍तान को सहायता देता रहेगा। इस बार तो दो कदम आगे बढ़कर अमरीकी मंत्रालय ने स्‍पष्‍ट किया है कि दोनों देशों के बीच बने संबंध एक दो वर्षों के लिए नहीं है, बल्कि अर्से तक निभाने के लिए हैं। सही है दोनों एक दूसरे के मौसी के बेटे जो ठहरे। भारतीय अर्थ व्‍यवस्‍था, भारतीय विदेश नीति, भारतीय सांस्‍कृतिक नीति और तो और भारत की रक्षा नीति में कहीं भी पाकिस्‍तान सौ कदम से कम पीछे नहीं है। जब हम हर मामले में पाकिस्‍तान से सौ कदम आगे हैं तो हमें किसी अन्‍य देश की बात मानने की जरूरत ही क्‍या है? हम क्‍यों बार बार उससे बातचीत करते हैं ? दुनिया में जो देश तेज गति से आगे बढ़ रहा है वो भारत है। यह न सिर्फ मैं कह रहा हूं बल्कि स्‍वयं अमरीका भी मानने लगा है। जापान और चीन को भी आभास हो चुका है कि जिस गति से भारत आगे आ रहा है, उससे अधिक गति स्‍वयं अमरीका की नहीं है। यह आभास दूसरे देशों के नेताओं को हो रहा है लेकिन हमारे नेताओं को नहीं। पहले आडवाणीजी पाकिस्‍तान में जाकर जिन्‍ना की मजार पर भावुक हो गए और अब मनमोहनजी अपनी ही बात से हटकर शर्म अल शेख में बेशर्म हो गए। अभी मामला ठण्‍डा ही नहीं हुआ कि अमरीका ने सदा के लिए दोस्‍ती का वायदा करके साफ कर दिया कि भारतीय नेताओं के भरोसे विकास का पहिया रुकता जाएगा।