बात से मन हल्‍का होता है

Wednesday, May 19, 2010

झारखण्‍ड में राजन‍ीति खण्‍ड खण्‍ड



भारतीय जनता पार्टी और झारखण्‍ड मुक्ति मोर्चा के बीच आखिरकार समझौता हो गया। राजनीति की बदनीति आखिरकार फिर सामने आ गई कि हम राजनीति नहीं बल्कि राज के लिए नीतियों का कचूमर निकाल रहे हैं। भाजपा शायद मायावती के साथ हुए उस समझौते को भूल गई है जिसमें मायावती ने अपने हिस्‍से का शासन करके ठेंगा दिखा दिया था। इस देश की अनुशासित पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा आखिर क्‍यों झारखण्‍ड मुक्ति मोर्चा की बातों में आ गई। जिस शिबू सोरेन को पद से हटवाने के लिए भाजपा के वरिष्‍ठ नेता ताल ठोककर बैठ गए थे, उसी शिबू सोरेन के लिए भाजपा ने कांग्रेस को न जाने कितनी खरी खोटी सुनाई लेकिन उसी के साथ बैठकर साबित कर दिया कि राज के लिए किसी भी नीति का उपभोग किया जा सकता है। भाजपा के अर्जुन मुण्‍डा एक बार फिर मुख्‍यमंत्री तो बन जाएंगे लेकिन क्‍या 28 महीने में वो प्रदेश की तस्‍वीर को बदल सकेंगे। राजनीति पार्टियां तो अपनी नीति के लिए पहचानी जाती है। फिर भाजपा ने तो हमेशा नीति आधारित राजनीति की बात की है। ऐसे में बार बार पार्टी अपना विश्‍वास क्‍यों खो देती है। क्‍या मजबूरी है कि भाजपा को झामुमो की हर शर्त को मानकर सत्‍ता में आना पड रहा है। क्‍या कारण है कि जनता के सामने जाने के बजाय राजनीति का गडबडझाला पेश किया गया। भाजपा जैसी पार्टियां ही जब एक राज्‍य की सत्‍ता पर काबिज होने के लिए द्वंद्व फंद का इस्‍तेमाल करने लगेगी तो फिर दूसरी पार्टियों से क्‍या उम्‍मीद की जाएगी।

अटल बिहारी वाजपेयी, लालक़ण्‍ण आडवाणी और भैरोसिंह शेखावत जैसे कद़दावर नेताओं ने जिस पार्टी को नई पहचान दी, प्रमोद महाजन ने जिस पार्टी को सींचा, उस पार्टी को आज अपने अस्तित्‍व को बचाए रखने के लिए इस तरह की सत्‍ता नीति अपनाना कहां तक जायज है। 25 मई को त्‍यागपत्र दे रहे शिबू सोरेन और तीसरी बार राज्‍य के मुख्‍यमंत्री बन रहे अर्जुन मुंडा में आखिर क्‍या अंतर रह जाएगा। कई बार लगता है कि देश के छोटे  राज्‍यों में राजनीति के लिए जो द्वंद्व फंद हो रहे हैं वो बड़े राज्‍यों के लिए खतरे की घंटी है। जिस तरह की राजनीति झारखण्‍ड में चल रही है वो देश के लिए चिंता का विषय है। सब सत्‍ता के लिए लड रहे हैं। अब अपनी रेलमंत्री को ही लें। दिल्‍ली में भगदड से स्‍टेशन पर यात्रियों की मौत हो गई लेकिन ममता बनर्जी रेल प्रबंधन की जिम्‍मेदारी मानने के बजाय आम जनता को ही सीख दे रही हैं कि उन्‍हें अनुशासन में रहना चाहिए। रेल प्रबंधन ने एक मिनट पहले स्‍टेशन पर प्‍लेटफार्म बदला यह नहीं सोचा। दरअसल देश की रेल मंत्री इन दिनों पार्षदों के चुनाव में व्‍यस्‍त है। जितने वोटर कोलकाता के निकाय चुनाव में हिस्‍सा लेंगे, उससे कई गुना या‍त्री तो रेल में हर रोज यात्रा करते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि वो यात्री कोलकाता के नहीं है। अपनी राजनीति के लिए एक तरफ भाजपा पूरी नीति को दाव पर रख रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस की पैदावार ममता बनर्जी अपनी राजनीति के लिए पूरे मंत्रालय को भूल बैठी है।