बात से मन हल्‍का होता है

Monday, March 28, 2011

मैं राजस्‍थानी या बिहारी ?



पिछले कुछ दिनों से मन में एक सवाल उठ रहा है कि मैं राजस्‍थानी हूं या बिहारी। कुछ समय पहले तक जो खबरें बिहार से आ रही थी, अचानक उनकी डेटलाइन बदलकर राजस्‍थान हो गई है। सरे राह और दिन दहाड़े हत्‍या जैसे मामले तो बिहार में ही सुनने को मिलते थे। अब वो सब राजस्‍थान में हो रहा है, जिसके कारण कभी बिहार बदनाम हुआ था। बीकानेर में एक युवक कांग्रेस नेता को दिन दहाडे चार जनों ने गोली मार दी। हत्‍यारे गिरफ़तार हो गए लेकिन व्‍यवस्‍था पर एक दाग हमेशा के लिए लग गया। कुछ दिन बाद ही किशनगढ़ अजमेर में एक विधायक के बेटे को गोली मार दी गई। हत्‍यारों की धरपकड़ हो रही है। यह मामला अभी निपटा ही नहीं कि एक युवक ने स्‍वयं को आग लगाकर टंकी से कूद कर जान दे दी। आक्रोशित भीड़ ने वहां खड़े पुलिस निरीक्षक को जिंदा ही जला दिया। अब आप ही बताएं कि यह सब राजस्‍थान में पहले कब हुआ। 24 फरवरी को बीकानेर में युवक कांग्रेस नेता की हत्‍या हुई और उसके बाद ठीक एक महीने में यह चारों घटनाएं हुई। मामला सिर्फ अपराध तक सीमित होता तो मान लेते कि बड़े शहरों की तर्ज पर जमीनों के विवाद या आपसी रंजिश में ऐसा हो जाता है। 28 मार्च को सवाई माधोपुर में ही जो कुछ हुआ उसने तो पूरे प्रदेश का ही नाम शर्म से नीचे कर दिया। जिस राजस्‍थान माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर को देशभर में श्रेष्‍ठ माना जाता था, उसी के केंद्र पर उत्‍तर पुस्तिकाओं को रात के अंधेरे में बदलने की काली करतूत सामने आई। इस घटना ने साफ कर दिया कि प्रदेश का आपराधिक बढ़ रहा है और व्‍यवस्‍था के चारों सिरों की चरमराहट बढ़ गई है। कभी भी टूटकर गिरने का डर सता रहा है तोयह गलत नहीं है।
मैं यहां अपने प्रदेश की तुलना बिहार से कर रहा हूं तो उसका एक और कारण राजनीतिक भी है। आपको याद होगा कि बिहार में बड़े नेताओं के बीच वाक युद़ध बढ़ता ही गया था। बाद में तो एक दूसरे को सार्वजनिक तौर पर गाली गलौच की स्थिति आ गई थी। राजस्‍थान की राजनीति में भी यह वायरस घुस चुका है। मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच चल रहा वाक युद़ध निश्चित रूप से किसी सुखद अंत की तरफ नहीं ले जा रहा है। जब मुद़दों पर चिंतन की शक्ति खत्‍म हो जाती है, आम अवाम के बारे में सोचने का समय नहीं होता और सत्‍ता प्राप्‍त करना ही एकमात्र लक्ष्‍य हो तो निश्चित रूप से ऐसे ही वचन सामने आते हैं। पूर्व मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे के राजस्‍थान में फिर से सक्रिय होने के बाद तो जैसे कांग्रेस सरकार पूरी तरह भयभीत हो गई है। हर मुद़दे पर कांग्रेस सिर्फ वसुंधरा को ही निशाना बना रही है। विधानसभा में कुत्‍ते की मौत पर बहस और बाद में सत्‍ता पक्ष की तरफ से हो हल्‍ला करने वाले दिन बुरे ही कहे जाएंगे। शायद बिहार की विधानसभा में जुतमपैजार से पहले ऐसे ही हालात रहे होंगे। इस बार मुझे भी दो दिन विधानसभा की प्रेस दीर्घा में बैठने का अवसर मिला। सोचा था कुछ बहस सुनने को मिलेगी लेकिन मैंने जो देखा वो साथी पत्रकारों ने शायद पहले नहीं देखा। पहला अवसर था कि सत्‍ता पक्ष के मंत्री ही खड़े होकर हो हल्‍ला कर रहे थे। जिस प्रतिन‍िधि पर विधायकों को शांत करने और सदन की कार्रवाई को संतुलित तरीके से संचालित करने का जिम्‍मा है, वही हो हल्‍ले के इशारे कर रहे थे। गृहमंत्री स्‍वयं हो हल्‍ले में शामिल थे। यह भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि वो स्‍वयं मुखिया थे। भाजपा की भूमिका भी सकारात्‍मक नहीं रही। वो चाहतीतो सदन चल सकता था। तीन दर्जन विधेयक पारित हो गए, विपक्ष चुपचुपा बैठा रहा। बहस के लिए विधानसभा अध्‍यक्ष आवाज देते रहे लेकिन कोई बोलने के लिए आगे नहीं आया। हां पक्ष जीता, हां पक्ष जीता की आवाज के साथ विधेयक बिना किसी बहस के पारित हो गए। निश्चित रूप से भाजपा नेता बोलते तो कांग्रेसी हल्‍ला करते लेकिन पूरी तरह हथियार डालने की भाजपाई नीति कम से कम मुझे तो रास नहीं आई।
प्रदेश में दो नेताओं पर सदन को चलाने की जिम्‍मेदारी है तो राज्‍य के विकास का जिम्‍मा भी उन्‍हीं के हाथ में है। गहलोत और राजे मिलकर अगर सदन चलाने की कोशिश करते तो शायद उन मुद़दों पर भी सदन में बहस हो जाती, जिसके लिए अरबों रुपए खर्च करके 200 जनों को सदन में भेजा गया था। ऐसे नेताओं का क्‍या हश्र होना चाहिए जिन्‍होंने सदन को चलाने के बजाय अनिश्चितकाल स्‍थगित का मार्ग प्रशस्‍त किया। उन विधायकों का क्‍या हो, जिनके लिए सदन में पार्टी बड़ी हो गई और करोड़ों लोगों की भावनाएं दो टके की रह गई। अगर सदन में ऐसा होता रहा तो निश्चित रूप से प्रदेश में हत्‍या, लूट और उत्‍तर पुस्तिकाओं को बदलने जैसी घटनाएं होती रहेगी। आज बिहार विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है, कल तक मुझे अपने प्रदेश को देखकर संतोष था लेकिन आज मुझे बिहार से ईर्ष्‍या हो रही है। काश मैं बिहारी होता। देरी से ही सही विकास के बारे में सोचता तो सही।

4 comments:

Unknown said...

शानदार सर् जी बधाई

RAJIV MAHESHWARI said...

sach kaha.....sach hamesha kadava hota hai.....

nilesh mathur said...

आपकी चिंता जायज है! वाकई आज राजस्थान बिहार को मात दे रहा है!अभिव्यक्ति!

l k chhajer said...

बिहार में राजस्थानी पलायन करके आ गए और आ भी रहे हैं
.तो भाई अनुराग कुछ तो साथ आएगा ही.
अपने बीकानेर को ही देख लो कितना बदल गया .
कभी रत में भी डॉ नहीं लगता था अब तो दिन भी सुरक्षित नहीं रहे.
लूण करण छाजेड