आज राजस्थान पत्रिका के प्रथम पृष्ठ पर एक कार्टून छपा है। बहुत ही शानदार। बताया गया है कि एक तरफ प्रधानमंत्री जी ऑफिस से बाहर निकल रहे हैं और पास ही खड़े कार्टून आइकन कहते हैं ''अब कुछ करोगे भी या सिर्फ बोलते रहेंगे''। चीन की घुसपैठ के मामले में मुझे यह सटायर सही समय पर लगाया गया शॉट है। आखिर क्या कारण है कि हमारी सरकारें सिर्फ बोलने का काम करती है। बयान देने में हम सबसे आगे हैं और करने में सबसे पीछे। मुझे करगिल युद्ध का समय याद आता है। मेरे शहर बीकानेर से पाकिस्तान की सीमा काफी सटी हुई है। करगिल युद्ध के वक्त बीकानेर में सेना का डेरा था, हर तरफ हथियार, गोला बारूद देखकर लगा कि अब तक सीमा पर आरपार की लड़ाई होने वाली है। पाकिस्तान को एक बार फिर छठी या सातवीं का दूध याद आ जाएगा। हम लोग भी युद्ध की तैयारी में जुटे हुए थे। इस बीच एक साधारण से जवान से बातचीत करने पहुंच गए। उससे पूछा कि युद्ध में जा रहे हो, कहीं डर तो नहीं लग रहा। उसने तुरंत कहा, ''हां, डर लग रहा है।'' मैंने उसे धिक्कारते हुए कहा कि डर ही लग रहा है तो यहां क्यों बैठे हो। घर जाओ। उसने कहा ''यही तो डर लग रहा है कि लड़ने के लिए इतनी दूर आए हैं। कहीं प्रधानमंत्रीजी वापस लौटने के लिए नहीं कह दे। हालात ऐसे नहीं थे कि वापस लौटने जैसी स्थिति हो। पहाड़ों में चुनौती दे रहे पाकिस्तान को धोरों की धरती से मात देने की तैयारी कुछ दिन बाद ही बंद हो गई। युद्ध नहीं हुआ। सिर्फ मशक्कत हुई, बातें हुई और सैनिकों को इधर से उधर चक्कर काटने पड़े। न सिर्फ करगिल के वक्त बल्कि संसद पर हमले सहित अनेक मामलों में भी सेना हरकत में आती है लेकिन कोई हरकत करती नहीं है। उस जवान से बात करने के बाद लगा कि उसकी बाजू तो फड़क रही है लेकिन सरकार उस पर पाबंदी लगाए हुए हैं। अगर चीन हमारी जमीन पर कब्जा कर रहा है, खुद ही आगे बढ़ता जा रहा है तो हमें कार्रवाई करने के लिए क्या अमरीका से अनुमति लेनी होगी। हम क्यों अपने बचाव के लिए खुद कुछ नहीं करते। धीरे धीरे चीन आगे बढ़ता जाएगा और हम शांति शांति की रट लगाए रहेंगे। आज युद्ध आसान नहीं है, बहुत गंभीर मसला है लेकिन युद्ध न सही, उचित प्रतिउत्तर तो दे ही सकते हैं। कभी पाकिस्तान, कभी चीन, कभी नेपाल, कभी बांग्लादेश। सभी पड़ौसी देश मौका मिलने पर भारत से छेडखानी करने से नहीं डरते। क्या हम चीन में इतनी मजबूती से जवाब नहीं दे सकते कि छोटे प्यादे तो सुनकर ही किनारे हो जाए। हमारी सेना के हाथ बांधने के बजाय पाकिस्तान व चीन को जवाब देने की तैयारी होनी चाहिए। अतिक्रमण करने से पहले चीन ने किसी से पूछा नहीं था, विदेश नीति का भी ध्यान नहीं रखा था। फिर हम उनका ध्यान क्यों रख रहे हैं।
कहां घुसा है चीन
उत्तरी सिक्किम के कैरंग सहित अनेक क्षेत्रों में घुसपैठ । पाकिस्तान दो किलोमीटर लंबे फिंगर टिप क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश में
क्या किया चीनी सेना ने
भारतीय जवानों पर गोलियां चलाई। दो जवान घायल।
क्या है नियम
नियमानुसार गोलीबारी करना अनुचित है। अगर भारत से कोई शिकायत है तो संबंधित माध्यम से ही यह
सूचना की जा सकती थी।
6 comments:
क्योंकि वो घूंसों का हकदार है
चांटे से उसका गुजारा नहीं होगा।
बिलकुल सही कहा आपने लातों के भूत बातों से नहीं मानते आभार्
maarenge.... maarenge, pehele poore masle ki kadi to bana de.
जोस में होस नही खोया जाता। युध्द का मतलब आप नही जानते।सिर्फ युध्द शुरु कर देने से मामला हल नही हो जाता। आप हमला करेंगें तो क्या चीन चुप चाप बैठा नही रहेगा और सैन्य शक्ति में वो हमसे कितना गुना आगे है इसका आप अंदाजा भी नही लगा सकते। देश का एक एक बंदा भी हथियार ले कर सीमा पर चले जाय तो भी हम युध्द नही जीत पायेंगें क्योंकि उसके पास जो मिसायलें हैं उससे वह एक साथ हमारे कई सहरो को खन्डहर मे बदल देगा। और देश में महगांई का हाल वो होगा की आप और हम जैसे लोग भी गरीबी की रेखा के नीचे चले जायेंगें और रातको भुखे सोना पडेगा। हम आज से तीस साल पीछे चले जायेंगें चीन से युध्द का असर आने वाले पचासियों सालो तक भोगना पडेगा और हमारी बडी होने वाली तथा आने वाली पिढी हमें इस युध्दके लिए कोसेगी क्योकि उनके हालात हमारे आज के हालात से कही बत्तर होगें।यहां तो युध्द का काफी छोटा परीणाम बताया जा रहा है। जब आप का पडोसी चीन जैसा दबंग हो तो उससे युध्द नही हर मसले पर बात की जाती और मामला कुटनीतिसे हल किया जाता है।
नमस्कार
मे आपके विचारो से काफ़ी हद तक सहमत हु । ओर अविनाश वाचस्पतिजी की बात भी सही हे,
लेकिन सोचने वाली बात ये हे की क्या हम चांटे ओर घूंसे (वो भी चीन को )मारने लायक ताकत रखते हे- ओर अगर ये सोचे कि वो दो मारेगा तो हम एक तो मारेगे तो क्या इतनी ईन्छा शक्ति हे हमारे महान राजनेताओ मे ।
wha.....kya bat ha लातों के भूत बातों से नहीं मानते
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