बात से मन हल्‍का होता है

Tuesday, September 1, 2009

ये ब्‍लॉग पर पाठक कब आएंगे?


पिछले कुछ समय से सोच रहा हूं कि आखिर ब्‍लॉग पर पाठक आने कब शुरू होंगे ? वर्तमान में तो ब्‍लॉग पर लेखक ज्‍यादा है पाठक कम। मैं पिछले एक वर्ष से ब्‍लॉग लिखकर मन की भड़ास निकाल रहा हूं। इस एक वर्ष में मैंने ब्‍लॉग पर आ रहे आलेखों और पाठकों की प्रतिक्रियाओं को देखकर अपना आकलन किया है। संभव है कि यह आकलन पूरी तरह सतही हो लेकिन वाल्‍तेयर के पद चिन्‍हों पर चलते हुए अभिव्‍यक्ति की अपनी स्‍वतंत्रता को कायम रखते हुए कहना चाहूंगा। हिन्‍दी ब्‍लॉग पर अब तक पाठकों के आने का सिलसिला शुरू ही नहीं हुआ। जो लोग सिर्फ पढ़ने के लिए आ रहे हैं, वो या तो बड़े ब्‍लाग जैसे कि अमिताभ बच्‍चन का बिग अड़डा पर ही आ रहे हैं। कुछ आलोचक व समालोचक के पाठक जरूर आ रहे हैं लेकिन शेष के लिए हम ही पाठक है और हम ही लेखक। एक दूसरे की हौंसला अफजाई और ब्‍लॉग के बारे में पढ़ने और उसे संवारने की कवायद ज्‍यादा है। जो ब्‍लॉगर किसी के ब्‍लॉग में नयापन देने के लिए कुछ न कुछ लिंक दे रहे हैं, उनके पाठक भी ज्‍यादा है और फॉलोवर भी। आशीषजी का ब्‍लॉग इसका उदाहरण है। निसंदेह उन्‍होंने और उनके जैसे दूसरे मित्रों ने सभी ब्‍लॉगर्स को हुलिया सुधारने और सलीके से ब्‍लॉग बनाना सिखाया है। कुछ ब्‍लॉग नौटंकी जैसे भी है, जिन पर मैटर के नाम पर कुछ नहीं है, हंसी मजाक जरूर है। हां हिन्‍दी चैनल मीडिया से जुड़े कुछ पत्रकारों के ब्‍लॉग जरूर पठनीय होते हैं। उनमें न सिर्फ विचार है बल्कि जानकारियों का खजाना भी है। अधिकांश ब्‍लॉगर नियमित लेखन के बजाय कुछ मैटर हाथ लगने पर अपनी भड़ास निकाल देते हैं, जी हां, ठीक मेरी तरह। अगर आप ब्‍लॉग दुनिया के बारे में कुछ लिख रहे हैं तो पाठक खूब आ जाएंगे क्‍योंकि स्‍वयं ब्‍लॉगर ही उसे पढ़ते हैं। यह मुझे तब पता चला जब मैंने पिछले दिनों आशीष जी को बिन मांगी नसीहत दे डाली। इतनी संख्‍या में लोग पहुचेंगे, यह मुझे ज्ञात नहीं था। इसके बाद पिछली तीन पोस्‍ट भाजपा पर लिखी लेकिन रेस्‍पोंस बहुत कमजोर नहीं, नगण्‍य है। मैंने सोचा कि यह मेरी लेखनी की कमजोरी है कि लोग मेरे ब्‍लॉग पर नहीं आ रहे। बाद में दूसरे लेखकों के ब्‍लॉग भी देखने शुरू किए। मैं यहां किसी के नाम का उल्‍लेख नहीं कर रहा लेकिन आप अपनी किसी गंभीर पोस्‍ट के पाठकों के बारे में विश्‍लेषण प्राप्‍त करें। पता चलेगा कि उन पर पाठक सबसे कम आए हैं। मुझे लगता है जिस गति से हम ब्‍लॉग पर पोस्‍ट डाल रहे हैं, उसी गति से इसके स्‍तर में सुधार के साथ साथ पाठकों की संख्‍या में वृद्वि करनी होगी। कई बार पढ़ता हूं कि ब्‍लॉगर्स मीट का आयोजन होता है। ऐसी मीट के बजाय हम आम लोगों को ब्‍लॉग के बारे में जानकारी दे ताकि लोग कुछ पढ़ने के लिए ब्‍लॉग पर क्लिक करें। विशेषकर उन लोगों को जानकारी देनी चाहिए, जो इंटरनेट पर तो रोज बैठते है लेकिन ब्‍लॉग नहीं देखते। मैंने यह भी महसूस किया है कि प्रमुख लेखक अब भी ब्‍लॉग पर अपना आलेख नहीं देते। इसका एक कारण तो वरिष्‍ठ लेखकों, चिंतकों व समालोचकों को नेट का कम ज्ञान हो सकता है दूसरा इस ब्‍लॉग दुनिया के प्रति उनकी अरुचि। मेरे शहर बीकानेर में ही डॉ नन्‍दकिशोर आचार्य, हरीश भादाणी, मालचंद तिवाड़ी, अनिरुद्व उमट सहित ऐसे दर्जनभर लोग हैं, जिन्‍हें पढ़ने की चाहत है लेकिन ब्‍लॉग की जानकारी नहीं। जो ब्‍लॉग रेटिंग तय कर रहे हैं, उन्‍हें भी विषय वार रेटिंग देनी चाहिए। खेल पर किसने अच्‍छा लिखा, साहित्‍य पर किसने बाजी मारी, समसा‍मयिक विषयों पर किसकी कलम तीखी रही। इससे अच्‍छे पाठकों को जोड़ने में सफलता मिल सकती है। ऐसे लोगों को ब्‍लॉग पर जोड़ने के लिए प्रयास होने चाहिए। भले ही उनसे अनुमति लेकर कोई भी आलेख को अपने ब्‍लॉग पर देना शुरू करें। अंत में कहना चाहूंगा कि ब्‍लॉगवाणी में जो रेटिंग आ रही है उसमें प्रथम दस ब्‍लॉग की सामग्री देखकर सभी यह चिंतन करें कि कैसे ब्‍लॉग की दुनिया को नया मोड़ दिया जा सकता है।

34 comments:

श्यामल सुमन said...

सार्थक चिन्तन और विश्लेषण अनुराग जी। ब्लागिंग की वर्तमान स्थिति पर स्वस्थ चर्चा।

विवेक सिंह said...

लो जी मैं आ गया पाठक,

ब्लॉग लिखकर डाल दिया जाय,

पाठक तो सदियों तक आते रहेंगे,

जल्दी क्या है!

विवेक रस्तोगी said...

हम तो इतिहास बना रहे हैं, इतिहास गवाह है कि जीतेजी किसी को भी पाठक नहीं मिले हैं।

Gyan Darpan said...

आपका चिंतन सार्थक है | लेकिन याद रखे नियमित ब्लॉग पढने वाले पाठक अपने काम की व अच्छी पोस्ट पढने ही ब्लॉग पर आते है | ब्लोग्वानी व चिट्ठाजगत से पोस्ट का शीर्षक देखकर ही पाठक आते है उनकी संख्या भी कम ही होती है | सबसे ज्यादा पाठक गूगल से आते है अतः गूगल से पाठक प्राप्त करने के लिए विविध विषयों पर लिखे साथ ही गूगल सर्च में आपका ब्लॉग आये इसके लिए कुछ जतन करे | गूगल ही सबसे ज्यादा पाठक भेजती है | मेरे ब्लॉग ज्ञान दर्पण पर आने वाले पाठकों में से ६१% पाठक गूगल से आते है |

अजय कुमार झा said...

अरे अनुराग जी ..आप चिंता काहे को करते हैं....

जब झा जी, मिसर जी, मिश्रा जी,चौधरी जी..आ गये हैं तो पाठक जी भी आ ही जायेंगे...आखिर कित्ते
दिंनों तक छुपे रहेंगे...

आपक चिंतन सही है..

उन्मुक्त said...

आपका सुझाव,'हम आम लोगों को ब्‍लॉग के बारे में जानकारी दे ताकि लोग कुछ पढ़ने के लिए ब्‍लॉग पर क्लिक करें।' अच्छा है। लेकिन, मेरे विचार से, चिट्ठे पर पाठक आ रहे हैं। इसका आभास इंटरनेट पर सर्च के रहे लोगों से लगता है। पहले ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम थी अब यह आधे से भी अधिक है।

Khushdeep Sehgal said...

तुमने पुकारा और हम चले आये...

Anonymous said...

मेरा एक तात्कालिक ख्याल है कि आप सिर्फ ब्लॉगवाणी पर आने वाले आंकड़ों पर निर्भर हैं

क्या आपने कभी:
सर्च इंजिनों से आने वालों की संख्या देखी है?
कितने लोग आपके ब्लॉग को रीडर के द्वारा पढ़ते हैं, जाना है?
कितने लोग आपकी पोस्ट अपने ईमेल में मंगवाते हैं, पहचाना है?
कितने लोग विभिन्न ब्लॉग डायेक्ट्रियों से आते हैं, यदि अपने ब्लॉग को वहाँ पंजीबद्ध कराया हो, तो?
अपने ब्लॉग पर आने वालों के रूझान की जानकारी के लिए कोई तंत्र स्थापित किया है?
एक माह में कुल कितनों के ब्लॉग पर अनौपचारिक टिप्पणी दी है?

निसंदेह आपके विचार ठीक है इस पोस्ट पर, किन्तु जरा विचार कीजिएगा

इसे अन्यथा ना लें, यह मात्र एक टिप्पणी ही है

संगीता पुरी said...

मुझे भी लगता है कि हिन्‍दी ब्‍लोगों पर अब पाठक आने लगे हैं .. वैसे विवेक सिंह जी और विवेक रस्‍तोगी जी का कहना भी सही है !!

रामकुमार अंकुश said...

लिखते रहिये !
कर्म कीजिये फल की इच्छा जाने दीजिये....
बिलकुल सूफियाना अंदाज ... नेकी कर दरिया में डाल....

अविनाश वाचस्पति said...

अनुराग जी खूब आयेंगे
रेलों में और
हवाई जहाजों में भर भर कर
ठूंस ठुंसा कर आयेंगे
जिस दिन आप हर्ष से
जलेबी बटवायेंगे।

Unknown said...

पाठक तो आते हैं और ख़ूब आते हैं
लेकिन बार बार और
लगातार तभी आते हैं
जब उन्हें
उनकी रुचि का सामान मिले....

यह सच है कि धीर-गम्भीर रचनाओं को
पाठक कम मिलते हैं

तो ये सिर्फ़ ब्लॉग पर ही नहीं होता,
हर क्षेत्र में ऐसा ही होता है.........

गुलज़ार और जगजीत सिंह का मरासिम
फ्लॉप हो जाता है
और कांटा लगा हिट हो जाता है...........

लेखक को चिकित्सक की तरह व्यवहार करना चाहिए...
कड़वी दवा भी सुगर कोटेड देनी चाहिए तो
उसकी दूकान चलेगी...........

अनूप शुक्ल said...

आ रहे पाठक भी! लिखते रहो भैया!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

पाबला जी के कथन से सहमति!!!!!

नीरज गोस्वामी said...

आपकी बात सच है...पाठक आते हैं लेकिन उस तादात में नहीं जिस की अपेक्षा की जाती है...क्यूँ नहीं आते इसकी मीमांसा करनी चाहिए...बहुत रोचक और सार्थक प्रशन उठाया है आपने...
नीरज

Ishwar said...

yahi baat mere sath bhi hai
par kya kare bas likhte rahiye
mere blog par khud mere shahar bikaner ke reader bhi nahi aate mere bhai.

शिवम् मिश्रा said...

सत्य वचन |
पाबला जी और अलबेला जी पूर्ण सहमती |

Anonymous said...

यह बात मैंने भी महसूस की
स्वयं मैं भी इसमें ख़ुद को हिस्सेदार मानती हूँ क्योंकि अधिकांशतः मैं भी ब्लोगिंग को सिर्फ़ लिखने तक सीमित रखती हूँ , पर अब पढने के लिए भी वक्त निकालती हूँ, जहाँ पर ठीक लगता है टिप्पणी भी देती हूँ।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

श्रावणी के दिन जब तुलसी ने मेले में पहली बार अपनी रचना पढ़ी तो केवल एक श्रोता - कोई वृद्ध कथावाचक पंडित - सामने थे। ... बाद में जो हुआ वह इतिहास है। जानते हैं वह रचना कौन सी थी ?

वह थी बेरोजगारी पर हिन्दी की पहली कविता
'खेती न किसान को भिखारी को न भीख बलि बनिक को बनिज न चाकर को चाकरी . . '

धारदार लिखेंगे तो कटने के लिए दीवाने आएँगे हीं।
रचते रहिए. . एक भी टिप्पणी न मिले तो भी।

बहुत बार पाठक टिप्पणी नहीं छोड़ता लेकिन अपना मन छोड़ जाता है।
हिन्दी ब्लॉगिंग अपनापन का संसार है। जरा देखिए तो सही आप की एक आवाज पर कितने खिंचे आ गए !

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

पाठक आते हैं जनाब.
लिखते रहिये, पाठक ज़रूर बढ़ेंगे.
मेरे ब्लॉग hindizen.com की अलेक्सा रैंकिंग पिछले साल एक करोड़ से ऊपर थी. आज यह तीन लाख से भी कम है. जिस दिन मैं पोस्ट नहीं करता उस दिन भी लगभग २००-३०० विसित वर्डप्रेस के डेटा में दिखाई देती हैं.
सर्च इंजन से आनेवालों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.
या तो किसी एक विषय विशेष पर लिखें या बिलकुल बेपरवाह होकर.
धैर्य रखें. पाठक आयेंगे.
लोग कुछ भी कह लें, अभी भी हिंदी ब्लॉगिंग अपने शैशवकाल में ही है.

Publisher said...

...लो अनुराग जी, बीस बावळों को देखकर एक बावळा और आ गया। वाह सही लिखा आपने। आशीष जी के बारे में भी सही कहा। सच बताऊं तो मैंने आशीष जी को सब्सक्राइब बहुत पहले कर लिया था, लेकिन धीरे-धीरे तकनीकी मामलों में दिलचस्पी बनी। अब उनसे हर पोस्ट पर सीखने को मिलता है।

आप लिखते रहें। हम आते रहेंगे। बधाई।

अपूर्व said...

मै ब्लोगिंग की दुनिया का नया प्यादा हूँ और अभी तक के अनुभव से आप्की बात से सहमत हूँ

अविनाश वाचस्पति said...

टिप्‍पणी प्रदाता हटें
तो पाठक आगे बढ़ें।

राजीव तनेजा said...

तुमने पुकारा और हम चले आए...


उम्मीद पे दुनिया को कायम रखिए ...पाठक आएँगे...ज़रूर आएँगे

Udan Tashtari said...

इस दिशा में आपका चिंतन सराहनीय है. आम पाठकों को, याने जिनका ब्लॉग नहीं है, जोड़ने का शंखनाद करिये, लोग शुरु हो जायेंगे. अपने यहाँ बीकानेर से ही सही. शुभकामनाऐं.

वीनस केसरी said...

लो जी समीर जी का कमेन्ट भी आ गया जो १०० के बराबर है :)

चिंतन बढ़िया किया आपने निष्कर्ष क्या निकला ?

वीनस केसरी

Anil Pusadkar said...

लो जी हम भी आ गये आपके पाठक बन कर।

डा० अमर कुमार said...


ज़ँगल में मोर के नाचते रहने से ही क्या होता है ?
ज़ायज़ चिन्ता !

Astrologer Sidharth said...

मेरे से पहले अठ्ठाईस लेखक यानि पाठक आ चुके हैं। अब तो पूरे उन्‍नतीस हो गए। मेरे सहित। एक पाठक की हैसियत से।

वाह जी वाह क्‍या पाठक मिले हैं इस पोस्‍ट को।

Nitish Raj said...

आप की सोच सही है। कदम तो उठाए जा भी रहे हैं और आगे उठाए भी जाते रहेंगे। मुझे याद आता है कि पुराने ब्लागरों ने मुझसे कहा था कि यार लिखो पर पढ़ो भी। ये नियम और क्रम सब अपनाएं तो शायद अच्छा रहे। कभी-कभी मैं भी भटक जाता हूं। लेकिन आप अच्छा और लोगों की पसंद का लिख रहे हों तो ही पाठक आएंगे ऐसा भी नहीं है।

Arvind Mishra said...

पाठक आह्वान की यह तर्ज मुझे एक फिल्मी गाना याद दिला गया -ये लाल रंग कब मुझे छोडेगा ? उसी कशिश के साथ अब आपका यह कहना की ये पाठक कब आयेगा मुझे बेसाख्ता हंसा गया !
दुनिया में कमी नहीं है कद्रदानों की गालिब करे तो कोई कमाल पैदा !
अब देखिये अपने जैसे कमाल पैदा किया ,टिप्पणियों से झोली भर दी आपने !
ये पैराग्राफ वगैरा क्यों नहीं डालते भैया ?

Ashish Khandelwal said...

अनुराग जी, आपकी बात आंशिक रूप से सही हो सकती है..लेकिन मेरा मानना यह है कि यहां 'कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर' वाला सिद्धांत लागू होता है। अगर सार्थक और लगातार लिखा जाए तो पाठकों को आने से कोई नहीं रोक सकता। यह धारणा भी आंशिक रूप से ही सही है कि ब्लॉग के पाठक केवल ब्लॉगर ही हैं। हां ..टिप्पणियों के मामले में यह ज़रूर लागू होता है। जो केवल पाठक होता है वह टिप्पणी काफी कम करता है। मुझे इसका अंदाजा अपने ब्लॉग पर लगे विजिट मीटर व पाठकों की ई-मेल के जरिए लगता है।

एक बात और कहना चाहूंगा कि मेरे विश्लेषण के अनुसार उन ब्लॉग्स पर पाठक ज्यादा हैं, जहां किसी विषय या विधा को आधार बनाकर ब्लॉग लिखा जाता है। जैसे कविता का ब्लॉग हो तो वहां केवल कविताएं ही हों, राजनीतिक लेखन हो तो वहां केवल उसी तरह के आलेख हों। सामग्री की खिचड़ी होने पर पाठक उससे नियमित रूप से नहीं जुड़ पाते।

हैपी ब्लॉगिंग.

sushilharsh said...

sir i am also your reader

शरद कोकास said...

भाई इतने तो आ गये ..और चाहिये क्या ?