लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी चिल्लाते रहे और पूरा देश उन्हें ही भला बुरा कहता रहा। आडवाणी ने कितनी बार कहा कि मनमोहन सिंह देश के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री है। तब सिंह ने इसका विरोध किया लेकिन अब तो यह स्थापित हो गया कि वो सच में कमजोर है। जो व्यक्ति अपनी बात पर नहीं टिक सके, उसे ही तो कमजोर कहा जाता है। जब स्वयं प्रधानमंत्री ने मुम्बई हमलों के बाद कहा कि वो पाकिस्तान से तब तक वार्ता नहीं करेंगे जब तक कि वो अपने यहां बैठे आतंककारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू नहीं कर देता। इसके बाद भी पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह न जाने किस दबाव में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मिलने के लिए तैयार हो गए। दो घंटे तक लगातार दोनों प्रधानमंत्रियों ने आपस में बातचीत की। अगर इस वार्ता के दौरान ही मनमोहन सिंह कह देते कि वो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से किसी तरह की वार्ता नहीं करेंगे तो शायद आडवाणी का बयान गलत साबित हो जाता। बड़े ही दुख के साथ मुझे तो मानना ही पड़ रहा है कि आडवाणी सही कह रहे थे। बताया जाता है कि अमरीका के दबाव में भारतीय प्रधानमंत्री को पाकिस्तानी पीएम से मिलना पड़ा। सवाल यह है कि क्या ओसामा बिन लादेन के गुट से जुड़े लोगों के साथ अमरीका भारत में इसी तरह की वार्ता करना पसंद करेंगे। शायद नहीं। इतना ही क्यों इस तरह का प्रस्ताव देने वाले देश पर अमरीका की गाज भी गिर सकती है। जब अमरीका लादेन समर्थकों से वार्ता करने को तैयार नहीं है तो हमारे पीएम मुंह लटकाए पाकिस्तान जो लादेन से भी बड़ा आतंककारी संगठन है,के प्रधानमंत्री से मिलने क्यों पहुंच जाते हैं। कम से कम मैं तो इसे किसी भी विदेश नीति का हिस्सा नहीं मानता। हम भारत के एक अरब लोगों में ''शायद'' अधिकांश को सिंह की इस मुलाकात से खुश नहीं है। अगर यह जनमत किया जाए कि इस वार्ता से क्या दोनों देशों के बीच शांति संभव है तो नब्बे फीसदी से अधिक यही कहेंगे कि इस वार्ता से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। निश्चित रूप से स्वयं प्रधानमंत्री भी मानेंगे कि इस वार्ता से कोई लाभ नहीं होगा, आतंकवाद कम नहीं होगा, पाक अपने आतंककारी शिविरों को नष्ट नहीं करेगा। ऐसी स्थिति में वार्ता क्यों की गई। मुझे तो प्रधानमंत्री का यह बयान बचकाना लगता है कि अन्य मुद़दों पर बात नहीं करेंगे। इस मामले में सिंह ने किसकी मानी मनमोहन की या फिर सोनिया की। बेहतर होता कि हमारे पीएम यह दो घंटे अपने ही देश के बारे में सोचने में खर्च करते। जिस देश का पूर्व राष्टपति हमारे यहां आकर यह कह दे कि किसी भी स्थिति में भारत और पाक के बीच संबंध सामान्य नहीं हो सकते, उस देश के पीएम से विदेश में मिलने से कोई लाभ होगा। मुझे तो कम से कम संदेह है। अमरीका के दबाव में हम कब तक अपने देशवासियों की भावना को कुचलते रहेंगे। विदेश नीति के नाम पर कब तक शहीदों का अपमान करते रहेंगे?
ब्लॉगर जगत को इस मामले में अपनी प्रतिकिया देनी चाहिए कि यह मुलाकत सही थी या नहीं ?
3 comments:
जबान की ही कीमत होती है। प्रधानमंत्री ने यह उचित नहीं किया।
bilkul hi sahi thi kyonki unhone bahut hi bahaaduri se yah maan bhi liya ki
Balochistan men Bharat hi aatankvaadi hai.
:)
Jai Ho
mulak ne yeh jahir kiya ki pakistan bharat ki roz marta rahe lekin hum hindustani jo fattu log hai jumari har samay fatti rehti hai, manmahan singh, atal bihari vajpai or bharat ki janta bevkuf hai, pakistan har roz hajaro hindustaniyo ko maar raha hai, lekin ye sale politision humare bhai yo ko kabhi bomb blast se kabhi kasmir mein golabari se mare ja rahe hai or hum, ek din mombati jala kar unhe shradhanjali dete rehte hai, humare mare gaye bhaiyo ko jab hi shanti milegi jab hum khud hath mein banduk lekar khade huve, or unko shradanjali banduk se unka badla lekar deve,
hamare desh ke jo neta hai wo ek no ke sale wo hai jiska jikra me yaha nahi kar sakta hunm.
Post a Comment