बात से मन हल्‍का होता है

Tuesday, June 23, 2009

माओवादियों पर पाबंदी

पश्चिम बंगाल में माओवादियों पर रोक का फैसला हो गया। राजनीति को फिर नया पैंतरा मिल गया। अगर कोई यह सोच रहा है कि बंगाल के पीडि़त का दर्द कम होगा तो यह गलत है। हकीकत तो यह है कि मुद़दा बना रहेगा और माओवादी वैसे ही अपना काम करते रहेंगे, गरीब फिर इन्‍हीं के हाथों शोषित होते रहेंगे। पश्चिम बंगाल सरकार ने राजनीति का श्रीगणेश करते हुए इस मुद़दे पर साफ कह दिया है कि इसे अभी लागू करने का विचार नहीं है। ऐसे बयान देने वालों को यह पूछे कि माओवादियों के प्रति उनका रवैया उदारतापूर्ण  क्‍यों है? पश्चिम बंगाल में आज भी ऐसे दर्जनों क्षेत्र है जहां पता नहीं चलता कि देश को आजादी अभी मिली है या नहीं। लोगों को एक बीघा जमीन में बुवाई करने में पसीना कम आ रहा है और उसे संभाल रखने में ज्‍यादा खून बहाना पड़ रहा है। ऐसे खेतों में सिंचाई तो किसान की आंखों के पानी से हो जाती है। यह सोचा ही नहीं जाता कि इन लोगों को भी देश की आजादी का स्‍वाद चखने  का अधिकार है। अगर पश्चिम बंगाल सरकार माओवादी पर अंकुश नहीं लगाना चाहती तो कम से कम ऐसे पीडि़त वर्ग  की रक्षा के लिए तो कुछ करें। पिछले कई दशकों  से  राज्‍य में काबिज वामपंथी अब तक यह निर्णय क्‍यों नहीं कर पाए कि वर्ष 1970 में लगभग खत्‍म हो चुका माओवाद फिर से कदम क्‍यों बढ़ा  रहा है। संसद में लम्‍बी चौड़ी बातें करने वाले वामपंथी नेता अपना विश्‍वास अपने ही घर में खो रहे हैं। महंगाई के मुददे पर चुप रहने वाले वामपंथी एक बार फिर सवालों के घेरे में है। एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में निलोत्‍पल बसु की बातें सुनकर लगा कि वो अब भी माओवाद के प्रति गंभीर नहीं है। लोकसभा चुनाव की हार के बाद कॉमरेड अब जनता के बीच जाने के बजाय हर बात में ममता एंड पार्टी का विरोध करने में जुटे हैं। बेहतर होगा कि पश्चिम बंगाल के बिगड़े हालात को सुधारे। लोकसभा की हार तो जैसे तैसे पच गई अब बंगाल की हार शायद सहनीय नहीं हो। बेहतर होगा कि बंगाल के हाल सुधारने के लिए वामपंथी स्‍वयं भी सुधरे। माओवाद स्‍वयं वामपंथियों के लिए खतर हो सकता है। 

2 comments:

Guman singh said...

nice post bhai

RAJIV MAHESHWARI said...

सच लिखा है आप ने..........पर हमारे नेताओ कब होश आएगा