बात से मन हल्‍का होता है

Sunday, June 7, 2009

नेता बड़ा या गिरगिट?


अब यह तय होना ही चाहिए कि गिरगिट बड़ा या नेता। निरिह और मूक गिरगिट का लेकर बार बार लोगों को कोसते कोसते जमाना बीत गया और नेता वैसा का वैसा है। मेरे खयाल में गिरगिट से ज्‍यादा रंग बदलना तो इंसान को आता है और उसमें भी इंसान अगर नेता बन गया तो ''करेले पर नीम चढ़ा' जैसा हो जाता है। विश्‍वास नहीं हो तो अपने संगमा सा'ब को देख लीजिए। कांग्रेस में अच्‍छी स्थिति रखने वाले संगमा ने कुछ साल पहले सोनिया गांधी को विदेशी तो कहा ही एक ही परिवार की बपौती बताकर उनका आंगन छोड़ आए थे। सही भी है कांग्रेस में परिवारवाद चल रहा है। पहले नेहरू फिर इंदिरा, फिर राजीव और अब सोनिया शायद आगे राहुल। फिर शादी की तो राहुल के बच्‍चे। संगमा जी ने पार्टी छोड़ते हुए उस खेमे से हाथ मिला लिया, जिन्‍होंने घर की बहु को विदेशी कहा। पिछले दिनों संगमा की अकल की ट़यूबलाइट फिर जल गई। उन्‍होंने सोनिया गांधी से जाकर माफी मांगी कि उन्‍होंने कुछ वर्ष पहले उन्‍हें विदेशी कह दिया था। क्‍या कारण है कि सोनिया पहले विदेशी थी और अब नहीं रही। समझदार जानते है कि संगमा ऐसे ही नहीं बदले। अब खुद संगमा की बेटी अगाथा को मंत्री बना दिया गया और स्‍वयं सोनिया ने उनकी तारीफ कर दी, मीडिया ने जबर्दस्‍त ''हाइक'' दे दी तो संगमा के समझ में आया कि इनसे संबंध अच्‍छे रखने में ही फायदे हैं। इसीलिए पहुंच गए माफी मांगने। अगाथा को देश की सबसे कम उम्र की मंत्री बनाने का श्रेय भी सोनिया को ही है। ऐसे में संगमा ने रंग बदला और कांग्रेस अध्‍यक्ष परिवारवाद की वाहक विदेशी महिला सोनिया से माफी मांगने पहुंच गए। अगर यह माफी बेटी के मंत्री बनने से पहले मांग लेते तो शायद आभास कम होता। खेर रंग कांग्रेस का भी कम बदलने वाला नहीं है ''विदेशी'' कहने वाले तो और भी है लेकिन हाथ सिर्फ संगमा पर ही क्‍यों रखा गया?
वैसे नेताओं के रंग बदलने का यह तो एक नमूना मात्र है। आपके आसपास ऐसे सैकड़ों उदाहरण होंगे जब नेताजी ने कहा कुछ और किया कुछ। दरअसल, इनकी आंख अर्जुन की तरह सिर्फ निशाने पर है और वो लक्ष्‍य है सीट। 

'''तुकबंदी'''

देखो इन नेताओं का कमाल
रखते बस अपनो का खयाल
सारी जनता रोए अपने हाल
बस जीए तो जीए इनके लाल

13 comments:

Manjit Thakur said...

एमएलए का मतलब.. ऐ में ले ले. ए में ले ले, मैले साहब

अजय कुमार झा said...

वो कहते हैं न राजनीति में हमेशा के लिए कोई दोस्त और दुश्मन नहीं होता...और अपने यहाँ तो सिर्फ मौकापरस्ती की राजनीति ही चलती है.....सामयिक और सार्थक लेखन.....

Unknown said...

waah waah !

समयचक्र said...

बहत बढ़िया अभिव्यक्ति . .
आपकी पोस्ट चर्चा समयचक्र में

Arun Arora said...

नेता बडा होता है गिरगिट को रंग बदलने मे समय लगता है यकीन नही तो दोनो को टेस्ट त्यूब मे रख कर देख ले :)

रंजन said...

ये तो कोई सवाल ही नहीं है..

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया लिखा है।वैसे नेता रंग बदलने मॆ ज्यादा माहिर है। गिरगिट तो दुश्मनों से बचने के लिए रंग बदलता है लेकिन ये नेता तो शिकार करने के लिए रंग बदलता है जनता का।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

Anonymous said...

बहुत खूब!!!

साभार
हमसफ़र यादों का.......

RAJIV MAHESHWARI said...

"इस हाथ ले उस हाथ दे " वाली बात है भाई .....

Astrologer Sidharth said...

http://blogonprint.blogspot.com/2009/06/20.html


यहां आपकी चर्चा है। देखिएगा।

Astrologer Sidharth said...

http://mahendra-mishra1.blogspot.com/


यहां भी आपकी चर्चा है। देखिएगा।

Mahendra said...

वाह अनुराग जी, बहुत बढिया