बात से मन हल्‍का होता है

Sunday, February 8, 2009

बेरोजगारों के देश में बेरोजगारी मुद़दा नहीं?


भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर मंदिर का राग अलापना शुरू कर दिया है। तय है कि चुनाव में मंदिर ही मुख्‍य मुद़दा होगा, कांग्रेस ने अल्‍पसंख्‍यकों को राहत पैकेज देने शुरू कर दिए हैं। तय है कि अल्‍पसंख्‍यक समुदायों के प्रति अपनी निष्‍ठा जताते हुए चुनावी मैदान में उतरेंगे। कॉमरेड भी किसी आर्थिक नीति या वैश्चिक मंदी पर अपने भाषण देते देते चुनाव लड लेंगे। बसपा बहुजन के साथ अब अगडी जातियों में अपनी निष्‍ठा जताएगी तो समाजवादी पार्टी समाज की चिंता किए बिना गरीब का दुखडा रोकर अपना काम निकालेगी। जो कभी जनता का दल था वो एक बार फिर काठ की हांडी चढाकर अपना काम निकालेगी और जनता देखती रह जाएगी। देश में और भी पार्टियां है जो लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरेगी और अपना अपना तमाशा दिखाकर चलती बनेगी। क्‍या आपको कभी ऐसा प्रतीत नहीं होता कि हम देश में महज वोट देने के लिए पैदा हुए हैं। हमारा वजूद सिर्फ एक वोटर का रह गया है। हमारी समस्‍या से देश के लोकतंत्र को सरोकार नहीं और सच कहें तो हमें अपने काम से मतलब है लोकतंत्र के जाए भाड में हमारी बला से। न सिर्फ देश की राजनीतिक पार्टियां बल्कि इन राजनीतिक पार्टियों को पोषित करने वाली आम जनता ने भी अपना दायित्‍व निभाना बन्‍द कर दिया है। हमारी ही कमजोरी है कि राजनीतिक पार्टियां खुद ही अपना मुद़दा तय करती है और चुनावी दिनों में अपनी 'प्रस्‍तुति' देकर चलती बनती है। यह प्रस्‍त‍ुति हमें प्रभावित करती है तो जीत जाती है और नहीं तो संसद के दूसरे कोने में बैठकर गला साफ करने की छूट मिल जाती है। दुख की बात है कि इस देश में मंदिर का मुद़दा उठाने में भाजपा फिर शर्म नहीं कर रही। कांग्रेस अल्‍पसंख्‍यकों के नाम पर दूसरे पक्ष को खुश करने में कोई कोर कसर नहीं छोड रहा। चिंता की बात है कि देश जिस समस्‍या के लिए सबसे ज्‍यादा परेशान है, वो मुद़दा ही नहीं है। मैंने इस देश में 'आलू प्‍याज' के नाम पर सरकार बदलते देखी है लेकिन बेरोजगारी को किसी ने मुद़दा नहीं बनते नहीं देखा। ऐसे नेता भी नहीं देख पा रहा जो बेरोजगार को रोजगार दिलाने की बात उठाए। 'विजय' मेरे आलेख का पात्र नहीं है बल्कि हकीकत है। महज 20 वर्ष की उम्र में उसने अपने पैरों पर खडे होने का निर्णय कर लिया। दिनरात मेहनत कर जैसे तैसे पढाई पूरी की। पहले एमआर के रूप में काम किया। अच्‍छा काम करने के कारण देश की प्रमुख कम्‍पनी में अच्‍छी  पोस्‍ट पर पहुंच गया। वेतन भी अच्‍छा हो गया। देश में इंश्‍योरेंस कम्‍पनियों की बाढ आई तो विजय भी उसके साथ बहता चला गया। एक कम्‍पनी से दूसरी कम्‍पनी और दूसरी से तीसरी कम्‍पनी में पहुंचकर उसने लगातार अपने वेतन का ग्राफ ऊपर बढाना चाहा। हर कोई ऐसा ही चाहता है तो उसने कोई गलत नहीं किया। सब कुछ ठीक चल रहा था विजय का वेतन भी वार्षिक पांच लाख रुपए तक पहुंच गया। इस बीच अचानक कम्‍पनी ने एक पत्र भेजा और राजा को कम्‍पनी से 'आवश्‍यकता नहीं है' का बहाना करके निकाल दिया गया। पिछले तीन महीने में उसकी हालत बिगड चुकी है,  चेहरे की लाली गायब हो गई, वो फिर से अपने शहर जाने में संकोच कर रहा है क्‍योंकि 'लोग क्‍या कहेगे'  की चिंता उसे सता रही है। विजय सिर्फ उदाहरण है। निश्चित रूप से इस देश में पिछले दिनों में लाखों बेरोजगारों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पडा। बैंगलूरु में ही हजारों बेरोजगार किराए के कमरों में इस उम्‍मीद में बैठे हैं कि एक दिन उन्‍हें फिर से बुलावा आएगा। बैंगलूरू में रह रहे मेरे एक मित्र की बात माने तो वहां हजारों बेरोजगार अपनी योग्‍यता के विपरीत बहुत छोटा काम करके जिंदगी बस बसर कर रहे हैं। निश्चित रूप से इन लाखों युवाओं की बेरोजगारी का सीधा असर इनके परिवार पर भी पड रहा है, थोडा और चिंतन करें तो इन्‍हीं बेरोजगारों के कारण देश में विकास की दर बढी थी लेकिन अब इन्‍हें ही किनारे करके क्‍या देश का विकास कमजोर नहीं होगा। हजारों लाखों लोगों की इस समस्‍या के बारे में आखिर कोई पार्टी चिंतित क्‍यों नहीं है। अधिकांश कम्‍पनियों ने मंदी के नाम पर युवाओं को कम्‍पनियों से निकाल दिया। जिस तरह तनाव में किसान आत्‍महत्‍याएं कर रहे हैं ठीक वैसे ही बेरोजगारी के कारण आत्‍महत्‍या करने वालों की संख्‍या बढती जा रही है। एक मंदिर के लिए देशभर में आंदोलन करने वाली पार्टी के लिए बेरोजगारी का मुद़दा सिर्फ कागजों तक क्‍यों हैं ? दुनियाभर में स्‍वयं को गैर सांप्रदायिक बताने वाली कांग्रेस एक वर्ग के लिए समर्पित होने के बजाय बेरोजगारों के लिए क्‍यों नहीं बोल रही? कांग्रेसनीत गठबंधन जो लम्‍बा चौडा पैकेज मंदी के नाम पर दिया, उससे कितने बेरोजगार फिर से नौकरी पर चढे ? महज उच्‍च वर्ग को लाभान्वित करने की नीति कब खत्‍म होगी। इस देश में बेरोजगारी कब मुददा बनेगा। इस देश के युवा को लोकतंत्र कब समझेगा और देश का युवा लोकतंत्र को कब समझेगा?

4 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

ये सब राजनैतिक दल पूंजीपतियों के चरणसेवक हैं और बेरोजगारी उन के लिए वरदान। तो क्यों बनाएंगे बेरोजगारी को मुद्दआ?

Anil Kumar said...

राजनेताओं को अपने रोजगार की चिंता है, नौजवानों के लिये कौन सोचता है?

PD said...

main bhi aise kayi Vijay ko jaanta hun..
berojgari koi mudda naa hona sach me Loktantra ki har hai..

परमजीत सिहँ बाली said...

राजनिति अब गन्दगी से भर चुकी है।असल मुद्दों की ओर कोई भी पार्टी ध्यान नही दे रही।सब में सिर्फ कुर्सी पाने की होड़ लगी है।देश का हित अब किसी को दिखाई नही देता।