बात से मन हल्‍का होता है

Monday, January 19, 2009

सेना से परेशान पाकिस्‍तान

पत्रकार के मन में सच्‍ची बात कभी दफन नहीं होती। कभी भी न कभी वो बोलेगा और बिंदास बोलेगा। जो गलत है उसे गलत ही बताएगा, कभी किसी के दबाव में चुप रह सकता है लेकिन मौका मिला तो चिल्‍ला चिल्‍लाकर कहेगा। कुछ ऐसा ही एहसास मुझे नेपाल यात्रा के दौरान भी हुआ। पाकिस्‍तानी पत्रकारों के मन से एक एक बात जैसे छनकर आ रही थी। इन सबमें सर्वाधिक बिंदास बोलने वाला सौहेल था लेकिन बात जब सेना की आई तो कभी कभार ही जुबान खोलने वाले अशफाक ने भी अपनी भडास निकाली। तब (सितम्‍बर 2006 में) पाकिस्‍तान में परवेज मुशर्रफ का राज था। इन पत्रकारों ने बताया कि सेना ने ही पाकिस्‍तान को बर्बाद कर रखा है। तब उन्‍हें उम्‍मीद नहीं थी कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब परवेज मुशर्रफ राष्‍ट़पति नहीं होंगे। सौहेल और जुबैर ने बताया कि पाकिस्‍तानी सेना ने किस कदर वहां आम आदमी के अधिकारों का हनन किया है। सेना के अधिकारी को सेना में प्रवेश के साथ ही भारी भरकम वेतन के साथ ही देशभर में कहीं भी बकायदा भूमि आवंटित होती है। इतना ही नहीं सेवानिवृति के बाद भी उसे भूमि आवंटित होती है। यह भूमि इतनी लम्‍बी चौडी होती है कि आम आदमी के लिए उसके आसपास की भूमि खरीदना ही संभव नहीं है। ऐसे में पाकिस्‍तान के प्रमुख शहरों व कस्‍बों में सेना के अधिकारियों का ही दबदबा है। सेना के अधिकारी देश के बारे में कम और अपने वेतन व सुख सुविधाओं के बारे में ज्‍यादा सोचते हैं। परवेज मुशर्रफ के वक्‍त सेना के अधिकारियों को इतना दिया गया कि आम आदमी में आक्रोश व्‍याप्‍त हो गया। न सिर्फ भूमि बल्कि हर काम में सेना को ही प्राथमिकता दी गई। देश की सुरक्षा के लिए सेना को प्रोत्‍साहित करना तो ठीक है लेकिन आम आदमी का हक मारकर सेना को खुश किया गया। उनका मानना था कि पाकिस्‍तान में सेना ही सबसे बडी समस्‍या है। अराजकता के लिए सेना जिम्‍मेदार है तो देश की तंग माली हालत भी सेना की बदौलत ही बिगडी है। सेना के आला अधिकारी पाकिस्‍तान में हर रोज अपनी सम्‍पत्ति को चार गुना कर रहे हैं और आम आदमी की जिंदगी में चार दिन भी चांदनी के नहीं आते। पाकिस्‍तान सेना के युद़ध में कमजोर और भ्रष्‍टाचार में आगे होने की बात सभी पाकिस्‍तानी साथियों ने स्‍वीकार की। इतना ही नहीं आए दिन पाकिस्‍तानी सैनिकों की ओर से अवैधानिक कृत्‍य करने और उनके खिलाफ कार्रवाई भी नहीं हो रही। उनका मानना था कि पाकिस्‍तान में अगर भारत की तरह शुरू से ही लोकतंत्र को मजबूत किया जाता तो आज ऐसे हालात नहीं होते। पाकिस्‍तानी साथियों ने तो यहां तक कहा कि महज अपने लाभ के लिए पाकिस्‍तानी सेना भारत के साथ संबंध बिगाड के रखती है। मैं आज भी इन साथियों की बात से सहमत हूं कि वहां का आम आदमी आज भी भारत से बेहतर संबंध रखना चाहता है। दोनों के बीच आडे आ रही है तो नेताओं और सेना की जिद। वो भी मानते हैं कि भारत का रुख सदैव सकारात्‍मक रहा है।

4 comments:

निर्मला कपिला said...

bahut badiyaa jaankaari hai dhanayabaad

MANVINDER BHIMBER said...

सच्ची बात कही थी मैंने .....
लोगों ने सूली पे .......

रंजू भाटिया said...

आम जनता कभी नही चाहेगी कि हालात बिगडे .राजनीति और यह नेता लोग अपने स्वार्थ के लिए करते हैं सब ..क्या आपकी अब भी उनसे बात होती है ? ओबामा के आने का मतलब वहां किस ढंग से लिया जा रहा है ? कुछ जानकारी मिले तो लिखे ..आम जनता ने इस बात को कैसे लिया हैं वहां पर ?

Astrologer Sidharth said...

सेना के स्‍वार्थ आम आदमी से अलग क्‍योंकर हुए। क्‍या सेना की भर्ती जाति या वर्ग विशेष में होती है। क्‍या सेनाओं के सभी विंग एक जैसे विकसित हो रहे हैं यानि खा-पीकर मोटे हो रहे हैं, आम आदमी टैक्‍स देने के लिए तैयार कैसे होता है। कौनसे शहरों में अधिक असर है।

कुछ और जानकारियां मिल सकें तो....