बात से मन हल्‍का होता है

Tuesday, December 9, 2008

वाह रे राजस्‍थानी जनता ?

वाह रे जनता, क्‍या कमाल किया है, सच में लोकतंत्र बहाल किया है, किसी को रंक बनाया तो किसी को राजशाही पर लटकाया है, लटकाया है क्‍योंकि न हराया और जिताया है, बस चंद कदम दूर बिठाया है, पांच साल तक डरते रहेंगे, घबराते रहेंगे, कुछ तो काम करते रहेंगे, जिसने स्‍वयं को सामंतशाही कहा उसे फिर घर बिठाया है और जो सत्‍ता में कोर कसर निकाल रहे थे, शेखी बघार रहे थे उन्‍हें फिर सत्‍ता पर बिठाया है ताकि पांच साल बाद उनसे हिसाब लिया जा सके, बोल मुन्‍ना तूने क्‍या कहा था और क्‍या कर दिखाया है, जनता की इस अदालत में फिर होगा हिसाब, बस पांच साल बाद| राजस्‍थान की धरा पर हर बार ऐसा हुआ है, जनता ने कभी इसे और कभी उसे राजप्रसाद दिया है | एक ने कहा था अब नहीं रुकेगा राजस्‍थान और दूसरे ने कहा अब नहीं झुकेगा राजस्‍थान| जनता फिर देखेगी कहां जाएगा राजस्‍थान? जिसने खजाना खाली बताया था उसे बाहर कर दिया था और जिसने खजाना भरा बताकर अपनो पर लुटाया, साथियों ने उसी खजाने को घर का बनाया, उन्‍हें भी जनता ने झटका लगाया | आरक्षण की राजनीति लील गई सरकार को, घडसाना की गोली दाग गई सरकार को, बेरोजगारों पर महिलाओं पर चली लाठी चल गई खुद सरकार पर यह आक्रोश था या फिर सत्‍ता पाने की जुगत में हार कि लाखों को दिया रोजगार भी काम नहीं आया, कर्मचारियों पर लुटाया खजाना भी कुछ कर नहीं पाया बात चिंता की है क्‍योंकि सरकार ने वो सब कुछ किया था जिससे सत्‍ता वापस आती है लेकिन नहीं आई खुद भाजपा ने कोई कसर नहीं छोडी विकास के साथ साथ मुम्‍बई धमाकों को खूब भुनाया था अखबारों में 25 नवम्‍बर तक विकास की बात करने वाले विज्ञापन अचानक मुम्‍बई पर केंद्रित हो गए थे लगता था खून की होली खेलने वाले आतंककारियों की खिलाफत के लिए भाजपा का केसरिया लहराएगा, नहीं लहराया तो क्‍या माने? जनता दोनों को दोषी मानती है या फिर बस पांच साल का हिसाब चाहती है, चिंता इस बात की भी है कि पार्टी की राजनीति तो कहीं सत्‍ता नहीं बदल रही, अपनों ने ही नाराज होकर तो कहीं सत्‍ता को घर का  रास्‍ता नहीं दिखा दिया, कहीं ऐसा तो नहीं कि  जनता  जो चाहती थी, वो राजनेताओं की व्‍यक्तिगत कुंठाओं और स्‍वार्थ के कारण संभव नहीं हो सका| यह सवाल उचित है कि सरकार गई है या फिर चाहकर भी नहीं  बनी है, उत्‍तर कुछ भी हो अगली जिम्‍मेदारी नई सरकार की है फिर यह दिन लौटेंगे राजा को रंक बना सकते हैं, इसी चिंता में कुछ कर कांग्रेस अपने पांच वर्ष गुजार सकते हैं, कुछ किया तो वापस आ सकते हैं, शीला दीक्षित का चित्र मन मस्तिष्‍क में बिठा सकते हैं, जहां न आतंकवाद का असर था और न आरोपों का, काम किया तो जीते, कुछ ऐसा ही मध्‍यप्रदेश भी रहा, खैर आप चिंतन करे कि क्‍या कारण रहे कि राजस्‍थान में वसुंधरा राजे मुख्‍यमंत्री से पूर्व मुख्‍यमंत्री हो गई| उम्‍मीद है आप विचार देंगे कि राजस्‍थान में सत्‍ता परिवर्तन के क्‍या कारण ?

4 comments:

U-said-it said...

hi anurag
happy to see you here. keep it up.
urvish kothari
www.urvishkothari-gujarati.blogspot.com

दिनेशराय द्विवेदी said...

सहमत हैं आप से।

प्रकाश गोविंद said...

भाई अनुराग जी लोकतंत्र में अक्सर सत्ता परिवर्तन का कोई विशेष कारण नही होता (अगर कोई मंडल या कमंडल का तूफान न हो ) बस जनता यूँ ही प्रयोग करती रहती है ! इससे बोर हुए तू उसको ....उससे बोर हुए तो इसको ! लेकिन मुझे लगता है कि राजस्‍थान में वसुंधरा राजे के प्रति जनता में अत्यन्त असंतोष होने के कारण ही ऐसा हुआ ....ऊपर से उनका राजशाही परिवार का होना भी एक कारण था !

बहरहाल आपके लेख के लिए मेरी शुभकामनाएं !!

कभी समय हो तो मेरे ब्लॉग पर भी
दस्तक दीजिये ! आपका स्वागत है !!

SHYAM NARAYAN RANGA said...

achha likha hai aur samaj se bhara bhi hai aur ye hota bhi hai ab dekhna ye hai ki manarani se muh mod chooki jaanta ko congress kya de paati hai
thanks for this article