बात से मन हल्‍का होता है

Sunday, December 7, 2008

आखिर किस पार्टी के साथ जाएं

देशभर में इन दिनों दो मुद़दों की चर्चा है एक मुम्‍बई में हुए बम धमाके और दूसरे पांच राज्‍यों में हो रहे विधानसभा चुनाव, न जाने क्‍यों मुझे दोनों ही मामलों में राजनेताओं की राजनीति समझ नहीं आती, मुम्‍बई बम धमाकों के बाद पार्टियों से जुडे नेता अपना अपना दामन साफ बताने में जुट गए और बचे हुए नेता इन्‍हीं पांच प्रदेशों में घूमकर एक दूसरे पर आतंकवाद को बढावा देने का आरोप मढते रहे, पिछले  दिनों मुझे अपनी बात कहने का अवसर मिला, तभी पता चला कि राजनेता कोई भी सच्‍ची बात सुनकर किस तरह बिफर जाते है, मौका था बीकानेर में भाजपा प्रत्‍याशी गोपाल जोशी की सभा को संबोधित करने आए भाजपा के पूर्व राष्‍टीय अध्‍यक्ष वैंकया नायडू से मिलने का, नायडू ने पहले अपनी बात कही, भाजपा की जमकर तारीफ की और आदत के मुताबिक कांग्रेस का परम्‍परागत विरोध किया
आतंकवाद के मुद़दे पर नायडू ने कहा कि मुम्‍बई में हुई घटना आतंकवाद की पराकाष्‍ठा है, मेरा सवाल है कि अगर मुम्‍बई में हुई घटना को आतंकवाद की पराकाष्‍ठा कहा जाए तो संसद पर जो कुछ हुआ उसे क्‍या कहा जाएगा, मुम्‍बई की घटना निश्चित रूप से देश के लिए शर्मनाक है, अब तक की सबसे बडी आतंकवादी घटना है, इसके बाद भी देश की संसद पर  हमला होना ही पराकाष्‍ठा कहा जाएगा, यह मेरा व्‍यक्तिगत विचार है, नायडू अपनी बात जनता के बीच कहते हुए संसद पर हुए हमले की बात क्‍यों नहीं करते, इतना ही नहीं नायडू से जब पत्रकारों ने यह पूछा कि अगर मुम्‍बई घटना के लिए केंद्र सरकार की घेराबंदी भाजपा कर रही है तो आतंककारियों को हवाई जहाज में बिठाकर छोडने वालों के साथ क्‍या होना चाहिए? इस सवाल पर नायडू ऐसे बिफरे जैसे पत्रकारों ने उनको पर्सनल एकाउंट की जमा राशि पूछ ली है, दो तीन सवाल बाद तो नायडू ने आपा ही खो दिया, उन्‍होंने यहां तक कह दिया कि पत्रकारों को सवाल पूछने के लिए नहीं बुलाया गया, हालांकि इसके बाद भी नायडू अपनी बात कहते रहे और पत्रकार सवाल पूछने के धर्म को निभाते रहे
आतंकवाद के मामले में कांग्रेस को भी साफ सुधरा नहीं कहा जा सकता, आश्‍चर्य की बात है कि जब देश आतंकवाद से जल रहा था, शहीदों चिता अभी ठण्‍डी भी नहीं हुई कि महाराष्‍ट से दिल्‍ली तक सियासत का खेल शुरू हो गया, मुख्‍यमंत्री से देश के गहमंत्री तक पहुंचने की लडाई सडक पर आ गई, न बनने वाले न विरोध करने वाले सोचा कि शहीद होने वालों का उद़देश्‍य राजनीति नहीं बल्कि आतंक के राज को समाप्‍त करना था,
मेरा सवाल है कि आखिर देश की दो प्रमुख पार्टियां जब सरे राह इस गंभीर मामले में अलग अलग बयान दे रही है तो देश का आम आदमी आखिर किससे सुरक्षा मांगे, 
उम्‍मीद है कि आप इस सवाल का जवाब अवश्‍य देंगे

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