Tuesday, July 26, 2011
प्रधानमंत्री को पत्र
आदरणीय मनमोहन सिंह जी
सादर नमस्कार। मुझे पता है मेरा यह पत्र आपके ध्यान में नहीं आना। मैं सिर्फ अपनी भड़ास निकाल रहा हूं। न सिर्फ मैं बल्कि पूरा देश इन दिनों भड़ास ही निकालने का काम कर रहा है। पिछले दिनों मेरी बाइक का एक ट़यूब पंक्चर हो गया। दुकानदार के पास गया, पंक्चर निकलवाया, उसने चालीस रुपए मांग लिए। कुछ वर्ष पहले तो चालीस रुपए में एक लीटर पेट़ोल आ जाता था। पंक्चर तो पांच रुपए में निकलता था। यानि पंक्चर की कीमत में चार गुना हो गई। आप जैसे महान अर्थशास्त्री के समक्ष मेरा यह तर्क गुस्ताखी ही माना जाएगा, फिर भी देश के एक अरब सामान्य अर्थशास्त्रियों यानि नागरिकों का गणित भी साफ सुथरा है। उनका कहना है कि सरकारी कर्मचारियों और नरेगा के श्रमिकों के अलावा देश में किसी का वेतन नहीं बढ़ा। भाव सब के बढ़ गए। मैंने जब दुकानदार को पंक्चर की रेट ज्यादा बताई तो उसने मुझे कहा भाईसाब मनमोहन सिंह जी से बात करो। महंगाई तो उन्होंने बढ़ाई है। एक पत्र उनको लिख देना। उसने तो मुझे अति में कही लेकिन फिर भी मैं आपको पत्र लिखने बैठ ही गया। सच बताएं कि आखिर महंगाई रोकने के लिए देश में क्या हो रहा है। कितना दुख का विषय है कि हम अपने देश में सिर्फ सरकारी कर्मचारी को ही नागरिक मानते हैं, जिन्हें छठा वेतनमान मिल गया। गैर सरकारी क्षेत्रों के आगे क्या सरकार ने घुटने टेक दिए हैं। जाति के नाम पर सर्वे करने वाली सरकार क्या यह सर्वे नहीं करा सकती कि देश में कितने लोगों को क्षमता से कम भुगतान मिल रहा है। वो दिनभर में जितना श्रम देता है, उतना दाम मिल रहा है नहीं। मजे की बात है कि देश में लोग गरीबी के कारण काल के ग्रास बन रहे हैं आपकी सरकार घोटालों में व्यस्त है। अब तो राजा ने भी कह दिया है कि आपको सब पता था। हमें नहीं पता कि वो सच कह रहा है या गलत। हम तो सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि आपसे जो उम्मीद थी वो पूरी नहीं हो रही। महंगाई दूर नहीं कर सको तो उसे रोक तो सकते हो। अरबो करोड़ों रुपए आप सिलेण्डर की कीमत बढ़ाकर जुगाड़ करना चाहते हैं, मेरा आग्रह है इतनी राशि तो दो चार मंत्रियों पर कड़ी नजर रखकर ही बचाए जा सकते है।
दुनिया में सिर्फ भारत ही ऐसा नहीं है जहां महंगाई बढ़ी है लेकिन अन्य देशों में सुधार के कार्यक्रम भी चले। आपने देश में गरीब को मुफ़त शिक्षा का नारा दिया। बच्चे स्कूलों में पहुंच गए लेकिन टाइ बेल्ट, महंगी किताबों, जूते और यूनीफार्म में ही उसके गरीब का जनाजा निकल गया। इससे अच्छा तो वो सरकारी स्कूल में ही था। जहां थोड़ा बहुत पढ़ने के साथ सब कुछ फ्री था। अब बात करें दो अक्टूबर से मिलने वाली फ्री दवाओं की। चिकित्सकों ने अभी से ऐसा माहौल बना दिया है कि इन दवाओं में दम नहीं होगा। वितरण के लिए आम आदमी चक्कर काटता रहेगा। बेहतर होगा कि मुफ़त दवाओं की व्यवस्था पुख्ता करें ताकि गरीब दवा के इंतजार में ही दम नहीं तोड़ दे। ऐसा नहीं हो कि डॉक्टर अस्पताल में तो जेनरिक दवा लिखे और घर पर कम्पनी की। घर वाली दवा से रोगी ठीक होंगे तो सरकारी में दिखाने भला कौन जाएगा। वैसे मेरा मानना है कि इन उपायों से गरीबी खत्म नहीं होने वाली। हर हाथ को काम देने से ही गरीबी का खात्मा होगा। रोजगार देने से पहले आपकी केंद्र सरकार और हमारी राजस्थान सरकार इतने रोड़े अटकाती है कि बेरोजगार के आगे से बे हटता ही नहीं है। शिक्षक भर्ती ही लें टेट का ऐसा लफडा डाला कि अधिकांश लोग इसे पास नहीं कर सकेंगे और उनकी बीएड डिग्री कचरे के ढेर में डाल दी जाएगी। पेटोल सिलेण्डर और डीजल की कीमतों में कमी करके आप महंगाई पर नियंत्रण कर सकते हैं। आपको सब्सिडी ही कमानी है तो धन्नासेठों से कुछ और वसूल कर लो। उनके सागर से एक लोटे पानी का असर नहीं पड़ता। लेकिन जिसके पास मटकी तक नहीं है, उसका एक लोटा पानी भी कीमती है। सरकार सागर वालों को छोड; मटकी वालों पर ही अपनी ताकत लगा रही है। छोटे निर्णय प्रधानमंत्रीजी आपके स्तर के नहीं है लेकिन देश की नब्बे फीसदी जनता को इन्हीं सवालों से मतलब है ।
ज्यादा में कह दी हो तो बुरा मत मानना। वैसे आप अब सुन सुनकर इतने पक्के हो गए कि कोई फर्क नहीं पड़ता।
सादर
अनुराग हर्ष