Friday, April 22, 2011
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो.
देश में एक नए गांधी का उदय अन्ना हजारे के रूप में हुआ। परसो तक हजारे को कोई नहीं जानता था लेकिन कल वो गांधी हो गए और आज उसी गांधी पर छींटाकशी का दौर शुरू हो गया। न सिर्फ छींटाकशी बल्कि अदालतों में उनके खिलाफ जनहित याचिका तक दायर हो गई। अन्ना का राजनीतिक और सामाजिक जीवन भले ही कुछ रहा हो लेकिन मैं अन्ना को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने का एक माध्यम मानता हूं। जिस देश में हम पत्थर की मूर्ति को भगवान मानकर पूज लेते हैं वहां अन्ना जैसे लोगों की आरती उतारकर मीडिया ने गलत नहीं किया। अब अन्ना तो आकर चले गए लेकिन क्या भ्रष्टाचार खत्म होने का सिलसिला शुरू हो गया। जवाब आप स्वयं दे सकते हैं। वैसे मैं यहां इक्का दुक्का उदाहरण के रूप में बताना चाहूंगा कि अन्ना जैसे लोगों पर आरोप लगने का सिलसिला क्यों शुरू होता है। क्यों हम उनके सकारात्मक पक्ष को देखने के बजाय हर तरफ से घेरने का प्रयत्न करते रहते हैं। पहला उदाहरण अन्ना के आंदोलन से उपजी राजनीति का है। ऐसे लोगों ने अन्ना का नाम लेकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकनी शुरू कर दी है। बात भ्रष्टाचार की और बात स्वयं के स्वार्थ की।
पहला उदाहरण
पिछले दिनों हमारे शहर बीकानेर में किरीट सौमेया आए। किरीट सौमेया भारतीय जनता पार्टी के राष्ट़ीय सचिव है और महाराष्ट के आदर्श घोटाला काण्ड का खुलासा करने का दम भरते हैं। वो राजस्थान में भाजपा के सह प्रभारी भी है। सौमेया ने यहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ भ्रष्टाचार का बिगुल बजाया है। अपने भाषण में अन्ना का जिक्र करने वाले सौमेया ने भ्रष्टाचार से जुडे कागजातों को मीडिया के समक्ष पेश किया। आधे अधूरे कागज दिए ताकि सारा मामला एक साथ मीडिया के सामने नहीं आए। बार बार वो मीडिया को बताए और बार बार मीडिया उन्हें हीरो बनाए। निश्चित रूप से ऐसे में उद़देश्य भ्रष्टाचार खत्म करना नहीं बल्कि अपनी और पार्टी की मार्केटिंग करना है। उन्होंने अशोक गहलोत के उस पत्र को सार्वजनिक किया जिसमें उन्होंने मफतराज पी मुनोत को अपना साथी बताया है। सौमेया ने इस पत्र को भी कांटछांट कर पेश किया। पत्र जिस व्यक्ति को लिखा गया, उसका नाम छिपाया गया। चार में से दो पृष्ठ ही मीडिया को दिए। बताया गया कि शेष बातें बाद में बताई जाएगी। ऐसे में साफ है कि सौमेया मीडिया को भ्रष्टाचार के नाम पर अपनी सीढी बनाकर आगे बढ़ना चाहते हैं। खैर इसके बाद सौमेया बीकानेर से जयपुर के लिए रवाना हुए। वो जिस शख्स की गाड़ी में बीकानेर से रवाना हुए थे वो भी ऐसे व्यक्ति की थी, जो न सिर्फ भ्रष्टाचार बल्कि कालाबाजारी और मिलावट के मामले में आरोपी है। ऐसे में सौमेया को अन्ना जैसे शख्स का नाम लेकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का अधिकार नहीं है।
मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार मिटाने के लिए सरकार को अभियान चलाना होगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बिल्कुल साफ कहा था कि चोर कहां है यह थानेदार को पता है। पुलिस के कौन से नाके पर सुविधा शुल्क वसूला जा रहा है, कौन से थाने में कितने रुपए की बंदी है, कौन लोग किस अपराध में जुड़े हैं, यह सब पुलिस की जानकारी में है। इसके बाद भी कार्रवाई के नाम पर शून्य है। दरअसल, भ्रष्टाचार की जड़े इतनी पैठ जमा चुकी है कि उसे निकाल बाहर करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो गया है। सिर्फ लोकपाल बिल से भ्रष्टाचार रुक जाएगा, मुझे नहीं लगता। हां, कुछ असर जरूर पड़ेगा। सूचना का अधिकार आया तो लोग फाइल में गड़बड़ करने से पहले सोचने लगे। उसके नए तरीके जरूर इजाद हो गए लेकिन हल्का अंकुश लगा। इसी तरह लोक पाल विधेयक से भी पूरी तरह भ्रष्टाचार का अंत नहीं होगा। यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि भ्रष्टाचार सामाजिक बुराई न बने। अपने परिजन का इलाज कराने के लिए डॉक्टर के घर हजारों रुपए पहुंचाने वाला ऑपरेशन के बाद अगर भ्रष्टाचार की बात करता है या सार्वजनिक रूप से आरोप लगाता है तो गलत है। वो स्वयं उस भ्रष्टाचार का हिस्सा बन गया। अपना तो इतना ही कहना है स्वयं को भ्रष्टाचार से मुक्त कर लो। देश अपने आप हो जाएगा। अंत में बहन अनामिका थानवी से मिली कुछ पंक्तियां प्रेषित है
रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो
...खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो
उभर रहा जो सूरज तो धूप निकलेगी
उजालों में रहो मत धुंध का हिसाब रखो
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वफा की रखो और बेहिसाब रखो....