इस पर चर्चा कल ही कर सकेंगे।
Thursday, January 15, 2009
पाकिस्तानी पत्रकारों के साथ पहला दिन
11 सितम्बर 2006 को हमारा पहला दिन पनॉस साउथ एशिया के मीडिया सेंटर में था। हमें हर हाल में दस बजे काठमांडू में ही स्थित पनॉस के मीडिया सेंटर पर उपस्थिति देनी थी। नेपाल के प्रतिष्ठित समाचार पत्र नेपाली टाइम्स व मैगजिन हिमालयन के कार्यालय से कुछ ही दूरी में एक गली में लेकिन हरियाली से लखदख थी यह गली। पनॉस का कार्यालय छोटा लेकिन हम बारह पत्रकारों के लिए बना मीडिया सेंटर विशेष छोटा नहीं लग रहा था। हम सभी वहां पहुंचे तो औपचारिक परिचय हुआ। औपचारिक इसलिए क्योंकि हम पहले ही होटल में साथ साथ रह चुके थे और नाम से एक दूसरे को पहचान गए। हमारे बीच में दो अनजान चेहरे थे। सोचा दोनों ही भारत के प्रमुख समाचार पत्र से होंगे। फिर सोचा दोनों में एक भारतीय और दूसरा पाकिस्तानी होगा। अभी चिंतन चल ही रहा था कि यह परिचय करा दिया गया कि दोनों मंचस्थ पाकिस्तान के हैं। हमारा तो जैसे मूड ही ऑफ हो गया। पाकिस्तानी पत्रकारों से हमें क्या सरोकार। हमारी कार्याशाला का विषय था "Absence of war is not peace" जिन लोगों को वार के अलावा कुछ आता नहीं उनसे पीस की बात सुनना हमारा लिए आश्चर्यजनक था। मूल रूप से हमें यह सिखाने का प्रयास भी हुआ कि जब देश में युद़ध के हालात हो या फिर बडा झगडा फसाद हो तो किस तरह से रिपोर्टिंग करनी चाहिए। सबसे पहले पाकिस्तानी पत्रकार जाहिद हुसैन ने हमें पाकिस्तान के हालात बताने शुरू किए। उन्होंने बेबाक तरीके से कहा कि विकट परिस्थितियों में रिपोर्टिंग का जितना अवसर पाकिस्तानी पत्रकार को मिल रहा है, उतना भारतीय पत्रकार को नहीं मिल रहा। कारण साफ है कि पाकिस्तान में हर तरफ से हमला हो रहा है। घर के अंदर हमला, बाहर से हमला और अपने ही पाले ही हुए लोगों का हमला। अपने करीब दो घंटे के लेक्चर में उन्होंने पाकिस्तान की दुर्दशा का बकायदा चित्रण किया। तत्कालीन राष्टपति परवेज मुशर्रफ के कारण बिगडे हालात का भी जिक्र किया। उन्होंने ऐसे हालात में हो रही पत्रकारिता के कुछ नमूने भी गिनाए। हुसैन यह कहने से नहीं हिचकिचाए कि पाकिस्तान में पत्रकारिता कठिन काम है। पाकिस्तान में सिर्फ भारत से युद़ध ही युद़ध नहीं है बल्कि घर में ही कई तरह के युद़ध चल रहे हैं। ऐसे में भारत से युदध़्ा नहीं होने का आशय पाकिस्तान में शांति होना वाकय नहीं था। इसके बाद भारत पाक सीईओ बिजनस फार्म के अध्यक्ष आमीन हासवानी ने भी अपनी बात कही। पहले पाकिस्तानी पत्रकार ने जिस संजीदगी के साथ अपनी बात कही और पाकिस्तान की दुर्दशा बयां कि उससे विपरीत हाशमी ने भारतीय मीडिया पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि जब क्रिकेट मैच होता है तो भारतीय मीडिया पाकिस्तान की खिलाफत करता है। मेरे एक सवाल से वो नाराज हुए कि जब मियादाद मैदान में कूदता है तो उसे जंपिंग मियादाद के अलावा क्या कहा जा सकता है। उन्होंने बताया कि जब पाकिस्तान के सीईओ भारत आए तो तत्कालीन मंत्री यशवंत सिन्हा ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। भारतीय मीडिया और नेताओं में पाकिस्तान के प्रति दुर्भावना है। उनका यह कथन चुभने वाला था। भारतीय मंत्री से नहीं मिलने देने का अपना दुखडा काफी देर तक हमारे सामने रोया। हाशमी की किसी भी बात से विषय का कोई सरोकार नहीं था। हम पहले लेक्चर से जहां प्रभावित हुए, वहीं दूसरे वक्तव्य पर निराश हुए। एक बार तो बात बिगड रही थी लेकिन जैसे तैसे सुधर गई। दरअसल मुझे लगा कि हाशमी पत्रकार थे ही नहीं। उन्होंने तो भडास ही निकालनी थी। हमारे विरोधात्मक सवालों के बाद उन्होंने अपनी बात संक्षिप्त कर दी। क्रिकेट को लेकर उनकी टिप्पणियों का जवाब देते हुए तो हमें ऐसे महसूस हो रहा था जैसे हम भी क्रिकेट के मैदान में ही खडे हैं और हर हाल में सामने वाले को जवाब देना है। पहले दिन के इस अनुभव के बाद हमारी शाम एकदम अलग थी। जिन मुद़दों पर सुबह हुसैन ने चर्चा की थी, उन्हीं पर हमने शाम को बाजार में घूमते घूमते पाकिस्तानी पत्रकारों से चर्चा की। उनकी विचारधारा उम्मीद से विपरीत थी। हमारी चर्चा का मूल आधार परवेज मुशर्रफ और पाकिस्तानी सेना था। इन पर पाकिस्तानी पत्रकार सौहेल और जुबैर की बात सुनकर मैं स्वयं दंग रह गया।
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2 comments:
रोचक रही। कल की पोस्ट का इन्तेजार है।
रोचक।। आभार ।।।
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