Wednesday, December 8, 2010
कुछ तो बोल मन के मोहन
अरे मन के मोहन कुछ तो बोल या सिर्फ देखता ही रहेगा। पीठ थपथपाता रहेगा। मैडम को सेल्यूट मारता रहेगा। तेरी सादगी, तेरा भोलापन एक बार फिर पुराने दिनों की याद दिला रहा है। जब हमारे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी हुआ करते थे। वो खुद बोलते तब तक पीछे वाले काम कर जाते। कुछ ऐसा ही इन दिनों हो रहा है, प्रधानमंत्री जी कुछ कहें उससे पहले काम निपट चुका होता है। 2जी स्पेक्टम घोटाले के बारे में पिछले कई दिनों से छप रहा है, प्रसारित हो रहा है। मन में प्रधानमंत्री की अच्छी छवि है इसलिए मानने को तैयार ही नहीं हुआ कि उन्होंने कोई गड़बड़ की होगी। लेकिन अब तो अति हो गई। प्रधानमंत्री जी कुछ बोल नहीं रहे और देश है कि शांत नहीं हो रहा। भले ही मीडिया में दाग लगे लेकिन किसी भी मीडिया ने इसे बोफोर्स से कम कवरेज नहीं दी। हर रोज नया तथ्य उजागर हो रहा है, कभी फोन टेप छप रहे हैं तो कहीं वर्ष 2008 में स्पेक्टम लाइसेंस के लिए लगी कतार की फोटो छप रही है। सवाल यह है कि अगर देश में कुछ भी गड़बड़ नहीं हुई तो प्रधानमंत्री इस मामले में शांत क्यों है। सवाल यह भी है कि इतने बड़े मामले में देश का विपक्ष के वो तेवर क्यों नहीं है जो बोफोर्स के जमाने में हुआ करते थे। मुझे याद है तब बीकानेर के मोहता चौक में एक पोस्टर चिपका हुआ था। राजीव गांधी का बड़ा मासूम सा फोटो था और नीचे बहुत ही शायराना अंदाज में लिखा था ''होठों पर जो लाली है, ये बोफोर्स की दलाली है।'' आज ऐसा कुछ नहीं है। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ बयान देकर विपक्ष किनारे हो गया है और समूची सरकार अपना मुंह सिलकर समय को गुजरने दे रही है ताकि धीरे धीरे यह बात भी ठण्डी पड़ जाए। इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा कि आग का गुबार उठे और धीरे धीरे ठण्डा हो जाए। मामला मीडिया पर भी उठा है, इसलिए हर कोई जमकर इस पर टिप्पणी कर रहा है। मुझे एक साथी ने एसएमएस किया कि राडिया और वीर संघवी जैसे पत्रकारों के इस मामले में सामने आने से साफ हो गया कि मीडिया भी भ्रष्ट है। उक्त मित्र एक सांसद के निजी सचिव भी है। मैंने उन्हें एसएमएस किया कि राजा भ्रष्ट है तो क्या देश के सभी नेता भ्रष्ट है। काफी देर बात उनका जवाब आया ''नाइदर ओर नोर'' मैंने वापस कहा रिप्लाई किया कि भाई फिर सारी मीडिया दोषी कैसे हो गई। खैर। बात यह माननी पड़ेगी कि इस मुद़दे पर विपक्ष जितना तेवर नहीं दिखा रहा है, उससे कहीं अधिक तो मीडिया ही बोल रहा है। आज ही राजस्थान पत्रिका के संपादकीय पृष्ठ पर वरिष्ठ पत्रकार एस: गुरुमूर्ति ने समूचे घटनाक्रम को सिलेसिलेवार स्पष्ट किया है। चैनल की भूख भी इन दिनों इसी समाचार से पूरी हो रही है। इतना ही नहीं कुछ चैनल ने तो बकायदा पत्रकारों को एक मंच पर बुलाकर बहस करवाई है। मेरा तो मानना है कि इस मुद़दे पर जितनी सरकार दोषी है, उससे कहीं अधिक विपक्ष कमजोर है। क्या कारण है कि गडकरी अपने बेटे की शादी में करोड़ों रुपए खर्च करके सादगी की सलाह दे रहे हैं और 2जी स्पेक्टम जैसे मुद़दे पर उनकी पार्टी अखबारों में विज्ञप्ति भेजने के अलावा कोई काम नहीं कर रही। बोफोर्स के तब और 2जी के अब में इतना अंतर आ गया कि पार्टियां अपना धर्म ही भूल गई। क्यों नहीं सरकार के खिलाफ इतनी लामबंदी होती कि प्रधानमंत्री तक पर त्यागपत्र का दबाव बनता। करोड़ों रुपए को हेरफेर हुआ और कॉमनवेल्ट के ''हीरो'' कलमाड़ी की फिल्म डिब्बे में बंद हो गई। अब अरबों रुपयों का घोटाला हो गया और सब कुछ शांत होने का माहौल बन रहा है। इस देश की जनता के पास दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के बीच इतना समय नहीं है कि वो सड़क पर खड़ी होकर सरकार से त्यागपत्र मांगे। यह काम तो विपक्ष को ही करना होगा। जनता तो मौका आने पर पक्ष और विपक्ष दोनों का हिसाब कर देगी। दोनों में कम निकम्मे को चुनने का विकल्प ही जनता के पास बचा रहेगा। पक्ष और विपक्ष को भी अब स्वयं को कम निकम्मा होने का सबूत देना होगा।
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1 comment:
good comment...waiting for more comments on man ke mohan.
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