Monday, July 26, 2010
मेरी गुरुदेव
मेरे गुरुदेव, कल गुरुपूर्णिमा थी और मैंने आपको दिनभर याद किया। चिंतन किया कि आपको फोन करके वंदन करुं या आप के बारे में फिर से चिंतन करूं। सुबह से टीवी चैनल पर देख रहा था और खुद भी अपने चैनल पर सैकडों लोगों को गुरुवंदना करते देख रहा था, अधिकांश गुरु तो साधु संत थे। आज के युग में अगर यही गुरु है तो असली गुरु कौन है। जिनसे सीखा वो गुरु नहीं हैं, मैं तो अपने उसी गुरु को याद कर रहा था, जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा। उनसे मैंने जीना सीखा, उनसे ही लिखना सीखा, उनके दम पर ही दुनिया में बोलना सीखा, दुनिया को समझना सीखा। आज जब मैं उन्हीं के बताए मार्ग पर लिख रहा हूं, बोल रहा हूं, सुन रहा हूं, सुना रहा हूं, सोच रहा हूं, लोगों को सोचने पर मजबूर कर रहा हूं, तब अफसोस मेरे गुरु मेरे साथ नहीं है। मैं तो दिनभर उन्हीं को याद करता रहा। मैं अपने एक गुरु के बारे में यहां बताना चाहूंगा। नाम था शारदा भटनागर। मुझे वो दिन याद है जो आज से करीब करीब तीस वर्ष पहले का हैं, यानि जब मैं पांच सात वर्ष का था। मेरी स्मृति में फिर भी है। मैं अपने स्कूल के मंच पर खडा भाषण बोल रहा था, सब सुन रहे थे, सभी मेरी ओर उत्सुकता से देख रहे थे कि इतना सा बच्चा कैसे इतना अच्छा बोल रहा हैं, तभी अचानक मैं बीच में अटक गया, वहीं कुछ खटक गया। मैंने मंच से ही जोर से आवाज लगाई 'दीदी, ये क्या लिखा है, समझ नहीं आ रहा" दीदी मेरे पास आई और बतादी कि क्या लिखा है। मैंने फिर से भाषण देना शुरू कर दिया। स्कूल पांचवी के बाद बदल गया, मैं बडा हो गया। मैं उन दीदी के बारे में कोई विशेष चिंता नहीं कर पाता था। झूठी भागमभाग में अपनी दीदी को याद नहीं कर पाता। लेकिन दीदी थी कि हर साल मुझे एक बार तो फोन करती ही करती। कभी स्कूल की दुर्दुशा के बारे में बताती तो कभी मेरे हाल पूछती। जीवन जब कोई बडा संकट आया तो उसी गुरु ने मुझे फोन करके सांत्वना दी, सब कुछ सुधरने का विश्वास जगाया, उनका विश्वास आज हकीकत में भी बदल गया। वो मुझे फिर याद करती, मैं उनको भूलता रहा। वो बीमार रही मुझे पता तक न चला, वो दुनिया से विदा हो गई, मुझे अपने ही अखबार में एक दिन बाद छपे विज्ञापन से पता चला। मेरी झूठी भागमभाग देखों कि मैं उन बारह दिनों में भी उनके निवास पर शोक जताने नहीं जा सका। नहीं गया क्योंकि इस पीडा से ग्रसित था कि गुरु के रूप में उन्होंने जितना मेरा ध्यान रखा उसका एक फीसदी भी मैंने उनका ध्यान नहीं रखा। आज भगवा कपडों वालों को गुरु के रूप में देखकर मुझे मेरा गुरु याद आता है, जो जीवन की हर पीडा में मेरी पीडा को खुद सहन करता था। न सिर्फ मेरी बल्कि अपने तमाम शिष्यों की सुनती थी, आज गुरुपूर्णिमा पर उसी गुरु को एक बार फिर नमन
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