भारत और पाकिस्तान एक बार फिर पास पास आ रहे हैं, यह महज कुटनीतिक चाल है या फिर सच में पाकिस्तान कुछ करके दिखाना चाहता है, भारत के सत्रह बंदियों को पाकिस्तान की जेलों से रिहा करने की पहल हो या फिर हमारे मंत्री की तारीफ करना। पाकिस्तान ने दोनों देशों के बीच नफरत की आग पर चुल्लुभर पानी डालने की कोशिश जरूर की है। इस चुल्लुभर पानी को बढाना या फिर घटाना दोनों देशों आगामी नीतियों पर निर्भर करेगा। हम पलटकर देखेंगे तो नफरत, आतंकवाद, कडवाहट, बयानबाजी, मौका परस्ती, धोखाधड़ी में पाकिस्तान हमेशा आगे ही दिखाई दिया। यही कारण है कि हमारी सरकार, हमारा प्रशासनिक तंत्र, हमारी खुफिया एजेंसियां, हमारा सैन्य प्रबंधन यहां तक कि हमारे देश के आम लोग पाकिस्तान के साथ किसी तरह का अच्छा व्यवहार रखने के पक्ष में नहीं है। पक्ष में नहीं होने का एक नहीं बल्कि अनेक कारण है और सभी अपनी जगह सही है। वहीं अगर हम सिक्के का दूसरा पहलू देखें तो एक और पाकिस्तान नजर आएगा, जिनका दर्द हमारे मुम्बई हमलों के पीडि़तों जैसा ही है, जयपुर की तरह लाहौर में भी अनेक माताओं ने अपने लाल को खोया है, कई बच्चों की अम्मी अब दुनिया में नहीं है, कई पिताओं ने अपने पुत्रों की अर्थी को कंधा दिया है। भारत की तरह पाकिस्तान भी आतंकवाद की समस्या से कहीं न कहीं जूझ रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि आम भारतीय और आम पाकिस्तानी दोनों ही इन समस्याओं से परेशान है। आतंकवाद से मृतकों की संख्या का आकलन करें तो पाकिस्तान और भारत में संख्यात्मक तौर पर समान स्थिति दिखाई देगी। दोनों ही जगह निर्दोष लोगों के मरने की संख्या कमोबेश बराबर ही होगी। हमारे यहां मंदिरों पर हमले हुए हैं तो पाकिस्तान में मस्जिदों को नहीं छोडा गया। दरअसल आतंककारियों के लिए भारत और पाकिस्तान एक जैसे हैं। उनके लिए हिन्दू और मुसलमान भी एक जैसे हैं। अब यह तो मीडिया का बनाया अंतर है कि वो मुस्लिम आतंकवाद है और यह हिन्दू आतंकवाद। पिछले दिनों एक चैनल की रिपोर्टर ने जब पाकिस्तान के गृहमंत्री से बात की तो उनसे हिन्दू आतंकवाद पर सवाल किया। मुझे शर्म आई कि आखिर यह सवाल ही क्यों उठता है।
मुश्किल यह है कि भारत पिछले पचास साल से पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्ते बनाने की कोशिश करता आ रहा है और पाकिस्तान पचास साल से उसी रिश्ते को बिगाडने के लिए एडीचोटी का जोर लगाता रहा है। हमारी खुफिया एजेंसियों के पास पाकिस्तानी आतंकवाद के ढेरों उदाहरण ससबूत है, इसके बाद भी पाकिस्तान उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा। यही कारण है कि दोनों के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि गृहमंत्रियों के मिलने या फिर हमारे गृहमंत्री की तारीफ भर कर देने से यह खाई पटने वाली नहीं है। पाकिस्तान ने सत्रह बंदियों को छोडने की जो पहल की है, वैसी ही पहल उसे लगातार करनी होगी ताकि विश्वास बन सके। पाकिस्तान को अपने सिरफरे खिलाडियों को भी समझाना होगा कि वो मैदान में खेल की भावना से खेले। छक्के खाने के बाद शोएब अख्तर ने जिस तरह से हरभजन की तरफ इशारा किया वो दोनों देशों के क्रिकेटप्रेमियों के लिए अच्छा संदेश नहीं था। दोनों देशों में क्रिकेट का जुनून करोडों लोगों पर है, ऐसे में ऐसी गलतियां भी परेशानी का सबब बन सकती है। बात बहुत छोटी है लेकिन विश्वास बनाने के लिए हर तरफ से प्रयास जरूरी है।
बेहतर होगा कि बात नेताओं से हटकर भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच शुरू होनी चाहिए। दोनों देशों को अपने 'आम' लोगों को इधर उधर आने जाने की छूट देनी चाहिए ताकि प्यार का रिश्ता फिर कायम हो।
1 comment:
नेताओं ने तो पूरी स्थितियाँ खराब कर रखी हैं.
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