एक जमाना था जब देश में रेल दुर्घटना होने के साथ ही रेल मंत्री त्यागपत्र दे देते थे। कभी कभार प्रधानमंत्री त्यागपत्र स्वीकार करते और कभी इनकार कर देते। त्यागपत्र में एक मात्र लाइन लिखी होती थी कि मैं दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए त्यागपत्र दे रहा हूं। अर्से से नैतिकता के नाम पर त्यागपत्र देने का सिलसिला ही खत्म हो गया। हां, प्रधानमंत्री को हटाना होता है तो संबंधित मंत्री की इज्जत बनाए रखने के लिए नैतिकता का बहाना जरूर किया जाता है। देश की संसद पर हमला होने के बाद देश के किसी नेता ने त्यागपत्र नहीं दिया। आतंकियों को हवाई जहाज में बिठाकर छोडकर आने वाले नेता ने त्यागपत्र नहीं दिया तो आईपीएल जैसे विवाद पर शशि थरूर से त्यागपत्र मांगना बेमानी है। बेमानी इसलिए नहीं है कि मामला छोटा है, बेमानी इसलिए हैं कि नैतिकता वाले नेता ही दुनिया से लुप्त हो गए हैं। थरूर से पहले तो उस मंत्री को नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र देना चाहिए जिन्होंने पिछले दिनों नक्सलवाद के चलते देश के जवानों की मौत की जिम्मेदारी ली थी। अगर जिम्मेदारी ही लेते हैं तो त्याग पत्र देते क्यों नहीं। क्या सरकार के पास उनके अलावा कोई मंत्री नहीं है, जो गलती मानने वाले को ही मंत्री बनाए रखे है। क्या कारण है कि अवसरवाद ने नैतिकता को पूरी तरह खत्म कर दिया। यह अवसर चला गया तो दोबारा मंत्री बन सकेंगे या नहीं। यही चिंता सता रही है, इसी कारण सीट छोडने के लिए तैयार नहीं। आईपीएल जैसे भ्रष्ट खेल पर हमारे नेता पार्टीवाद छोडकर एक मंच पर आ सकते हैं, लेकिन देश के लिए नहीं। शरद पंवार और नरेंद्र मोदी की नजदीकी इसका उदाहरण है। जब आप भाजपा को गाली निकालते हैं तो उसके नेता के साथ यह धंधा क्यों कर रहे हैं। अगर आप कांग्रेस विचारधारा को ही गाली दे रहे हैं तो कमोबेश उसी विचारधारा से जुडे नेता से क्यों नजदीकी रखते हैं। कारण साफ है कि मन के साथ साथ विचारों की नैतिकता भी खत्म हो गई है। इसलिए थरूर से इस्तीफे की उम्मीद कना ही बेकार है अगर दे देते हैं तो मान लेना चाहिए कि कांग्रेस अब थरूर के नाटक सहन नहीं कर पा रही थी।
1 comment:
wellcome the blogger world once again
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