बात से मन हल्‍का होता है

Tuesday, April 27, 2010

पर इनकी अक्‍ल ठिकाने नहीं आई


छोटा बच्‍चा जब बार बार गर्म चाय के कप पर हाथ मारने की कोशिश करता है तो मां कई बार कप को हटाती है, फिर भी बच्‍चा नहीं मानता तो मां एक बार बच्‍चे का हाथ उस कप पर टिका ही देती है, बच्‍चा समझ जाता है कि कप गर्म है और मुझे इससे दूर रहना है। मां शब्‍दों से कुछ नहीं कहती लेकिन अनुभव करा देती है। बच्‍चा तो समझ सकता है लेकिन हमारे नेताओं के समझ में नहीं आती, या यूं कहें कि समझ में आने के बावजूद नासमझ बने हुए हैं। चलिए सीधी बात पर आते हैं कि आईपीएल काण्‍ड में देश के एक नेता को अपना मंत्री पद छोडना पडा। ऐसे व्‍यक्ति को पद छोडना पडा जिस पर कभी समूचे भारत को नाज था। क्रिकेट के चहेतों को शायद नहीं पता कि शशि थरूर वहीं शख्‍स है जिसे कभी संयुक्‍त राष्‍ट महासभा के महासचिव बनाने के लिए भारत सरकार ने खासी मेहनत की थी। बाद में थरूर राजनीति में आए और केंद्र में विदेश राज्‍यमंत्री बने। थरूर विदेशी मामलों में सच्‍चे मायने में अनुभवी और पद के हकदार थे। लेकिन क्रिकेट की राजनीति में ऐसे उलझे कि हिट विकेट आउट हो गए। थरूर जैसे शख्‍स को देखकर भी देश के उन नेताओं को होश नहीं आया जो राजनीति में रहते हुए क्रिकेट खेलने का रिस्‍क ले रहे हैं। आखिर क्‍या लालच है कि भारतीय जनता पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं के आंखों के तारे नरेंद्र मोदी जैसे शख्‍स क्रिकेट में उलझे हुए हैं। आखिर क्‍यों नरेंद्र मोदी को क्रिकेट में हिन्‍दुत्‍व नहीं दिखता,आखिर क्‍या कारण है कि अपनी छवि को किनारे कर नरेंद्र मोदी भी क्रिकेट की पंचायती में है। नरेंद्र मोदी को छोडे शरद पंवार को लें। शरद पंवार का तो जीवन ही राजन‍ीति में निकल गया। वो अब तक जितने मंत्रालयों के मंत्री रहे हैं, उनमें एक भी बीसीसीआई के अध्‍यक्ष पद से छोटा नहीं होगा लेकिन वो बने बीसीसीआई के अध्‍यक्ष। इसके लिए उन्‍होंने ललित मोदी का साथ लिया जो सीधे तौर पर भाजपा नेता वसुंधरा राजे के गुट से जुडे थे। आखिर क्‍या कारण है कि शरद पंवार जैसे दिग्‍गज को आईपीएल से जुडना पडा। क्‍या लाभ मिला।केंद्र  के ही एक और मंत्री सी:पी जोशी भी क्रिकेट की पंचायती में है। सी पी जोशी स्‍वच्‍छ छवि के रहे लेकिन क्रिकेट में आने से उन पर भी प्रश्‍न चिन्‍ह लग गया। आखिर क्‍या कारण है कि भारतीय नेता अपने जनहित कार्यों पर कम औरधन बल वाले क्षेत्रों पर अधिक ध्‍यान देते हैं। मलाई खाने की राजनीति आखिर कब बंद होगी।

Tuesday, April 20, 2010

मोदी क्रिकेट के नायक या खलनायक


ललित मोदी। वो शख्सियत जो क्रिकेट की दुनिया में आंधी की तरह आई और शायद अब तुफान की तरह जाएगी। विदेशी शिक्षा से दक्ष इस खिलाडी ने देशभर में राजनीति का जितना लाभ उठाया शायद क्रिकेट से जुडा कोई खिलाडी भी नहीं उठा सका। एक छोटा सा उदाहरण तो यह है कि ललित मोदी राजस्‍थान में तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ उनके संबंध काफी अच्‍छे थे। हालात ऐसे थे कि भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी तक ललित मोदी से घबराते थे। फण्‍डा सिर्फ इतना था कि मोदी मुख्‍यमंत्री को मुख्‍यमंत्री साहिबा नहीं बोलकर वसु बोलते थे। इतनी नजदीकी जताते थे जैसे उनके घर के व्‍यक्ति हो। यहां तक कि पुलिस अधिकारी को बीच मैदान में मोदी इस तरह डांटते थे जैसे वो डीजी हैं और अधिकारी अदना सा सिपाही। राजस्‍थान में तो मोदी ने आईपीएस अधिकारी तक को इसी तरह डांटा, फटकारा। इससे पहले मोदी ने क्रिकेट की दुनिया में हिमाचल प्रदेश से प्रवेश किया था, वहां हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के सदस्‍य बने। हां, वहां मोदी की ज्‍यादा नहीं चली और उन्‍हें वहां से चलता कर दिया गया। इसके बाद वो राजस्‍थान में नागौर क्रिकेट एसो‍सिएशन के सदस्‍य बनकर आरसीए में आए। आरसीए में कई धुरंधरों को आउट करते करते मोदी ने आरसीए अध्‍यक्ष का पद छीन लिया। रुंगटा परिवार का रुतबा मोदी ने ही खत्‍म किया। मोदी की भले ही कितनी ही बुराई हो लेकिन राजस्‍थान में उन्‍होंने क्रिकेट को जीवित कर दिया, खिलाडियों को आगे बढाया, आक्रामक स्थिति में क्रिकेट को ला दिया। कारण साफ था कि अब तक राजस्‍थान क्रिकेट सरकारी स्‍टाइल में चल रहा था। कभी वसुंधरा राजे के खास माने जाने वाले मोदी बाद में शरद पंवार गुट में शामिल हो गए। मौका मिला तो उन्‍होंने पंवार को ही बीसीसीआई का अध्‍यक्ष बनाने के लिए लॉबिंग की, सफलता भी मिली तो इस सफलता को दिलाने का प्रसाद भी मिला। जब मोदी को लगा कि वो बीसीसीआई में कुछ खास नहीं कर सकेंगे क्‍योंकि शरद पंवार की हस्‍ती के आगे वो नहीं टिकेंगे तो उन्‍होंने पंवार का साथ देकर उनसे आईपीएल शुरू करने की पेशकश रखी। स्थिति साफ हुई और मोदी आगे बढ गए, उन्‍हें आईपीएल का सर्वेसर्वा बना दिया गया।
विदेशों में पढे मोदी का हिमाचल प्रदेश, राजस्‍थान या फिर बीसीसीआई क्रिकेट से कभी कोई लेना देना नहीं रहा। वो क्रिकेट के खिलाडी भी नहीं रहे। इसके बावजूद उनकी आय बढती ही चली गई, फिलहाल मोदी पर आयकर विभाग की वक्र द़ष्टि के आरोप भर है लेकिन सिद्व होने की संभावना कम नहीं है। मोदी ने आयकर विभाग को ही पांच गुना अधिक आयकर दिया है। सूत्रों की माने तो राजस्‍थान में पिछले वर्ष सर्वाधिक आयकर देने वालों की सूची में भी मोदी का नाम आ गया। आखिर इतनी तेज गति से उनका धन बढा कैसे ? खैर कुछ भी हो मोदी फिलहाल फंस चुके हैं और उनके लिए अब बाहर निकलना आसान नहीं होगा। संसद में चली राजनीति के बाद शरद यादव, मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव की तेज गेंद मोदी सहन नहीं कर सकेंगे और शायद इसी घबराहट में मोदी हिट विकेट आउट हो जाएंगे। वैसे क्रिकेट के अच्‍छे के लिए मोदी ने जो कुछ उसके लिए उनका धन्‍यवाद। गलत किया तो अब कौन बचाएगा? क्रिकेट को आईपीएल नाम का नया संस्‍करण देने वाले मोदी क्रिकेट के नायक हैं या खलनायक ?

Sunday, April 18, 2010

खो गई नेताओं की नैतिकता




एक जमाना था जब देश में रेल दुर्घटना होने के साथ ही रेल मंत्री त्‍यागपत्र दे देते थे। कभी कभार प्रधानमंत्री त्‍यागपत्र स्‍वीकार करते और कभी इनकार कर देते। त्‍यागपत्र में एक मात्र लाइन लिखी होती थी कि मैं दुर्घटना की नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए त्‍यागपत्र दे रहा हूं। अर्से से नैतिकता के नाम पर त्‍यागपत्र देने का सिलसिला ही खत्‍म हो गया। हां, प्रधानमंत्री को हटाना होता है तो संबंधित मंत्री की इज्‍जत बनाए रखने के लिए नैतिकता का बहाना जरूर किया जाता है। देश की संसद पर हमला होने के बाद देश के किसी नेता ने त्‍यागपत्र नहीं दिया। आतंकियों को हवाई जहाज में बिठाकर छोडकर आने वाले नेता ने त्‍यागपत्र नहीं दिया तो आईपीएल जैसे विवाद पर शशि थरूर से त्‍यागपत्र मांगना बेमानी है। बेमानी इसलिए नहीं है कि मामला छोटा है, बेमानी इसलिए हैं कि नैतिकता वाले नेता ही दुनिया से लुप्‍त हो गए हैं। थरूर से पहले तो उस मंत्री को नैतिकता के आधार पर त्‍यागपत्र देना चाहिए जिन्‍होंने पिछले दिनों नक्‍सलवाद के चलते देश के जवानों की मौत की जिम्‍मेदारी ली थी। अगर जिम्‍मेदारी ही लेते हैं तो त्‍याग पत्र देते क्‍यों नहीं। क्‍या सरकार के पास उनके अलावा कोई मंत्री नहीं है, जो गलती मानने वाले को ही मंत्री बनाए रखे है। क्‍या कारण है कि अवसरवाद ने नैतिकता को पूरी तरह खत्‍म कर दिया। यह अवसर चला गया तो दोबारा मंत्री बन सकेंगे या नहीं। यही चिंता सता रही है, इसी कारण सीट छोडने के लिए तैयार नहीं। आईपीएल जैसे भ्रष्‍ट खेल पर हमारे नेता पार्टीवाद छोडकर एक मंच पर आ सकते हैं, लेकिन देश के लिए नहीं। शरद पंवार और नरेंद्र मोदी की नजदीकी इसका उदाहरण है। जब आप भाजपा को गाली निकालते हैं तो उसके नेता के साथ यह धंधा क्‍यों कर रहे हैं। अगर आप कांग्रेस विचारधारा को ही गाली दे रहे हैं तो कमोबेश उसी विचारधारा से जुडे नेता से क्‍यों नजदीकी रखते हैं। कारण साफ है कि मन के साथ साथ विचारों की नैतिकता भी खत्‍म हो गई है। इसलिए थरूर से इस्‍तीफे की उम्‍मीद कना ही बेकार है अगर दे देते हैं तो मान लेना चाहिए कि कांग्रेस अब थरूर के नाटक सहन नहीं कर पा रही थी। 

Saturday, April 17, 2010

शिक्षा का यह कैसा अधिकार

राजस्‍थान में शिक्षा का अधिकार तो लागू हो गया लेकिन हकीकत इस वीडियो में है
http://www.youtube.com/watch?v=1uu3kYapeiI


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Friday, April 16, 2010

सानिया सानिया सानिया सानिया

पिछले दिनों मीडिया के पास जो सबसे बडा मुद़दा था वो सानिया मिर्जा और पाकिस्‍तानी क्रिकेटर सोएब मलिक के निकाह का था। हमारी मीडिया को चिंता थी कि सानिया की शादी आखिर कैसे हो सकती है, आयशा का ऐसा टिविस्‍ट डाला कि सास बहु सीरियल की टीआरपी भी कम हो गई। मेरी घरवाली सानिया को नहीं जानती लेकिन उसने भी साफ कह दिया कि यह तो गलत है, आयशा है तो फिर सानिया क्‍यों ? दो दिन बाद ही उसने कहा कि सानिया का पति कितना अच्‍छा है, उसने वो ही सूट पहना जो हैदराबादी लोग पहनते हैं, मैं सुनता रहा। दो दिन गुजरे और उसने मुझे फिर टोका कि देखो सानिया के रिसेप्‍श्‍ान में 29 तरह के पकवान थे। इस बीच दांतेवाडा में क्‍या हुआ, मनमोहन सिंह का ओबामा से मेल मिलाप कैसा रहा, उस पर ध्‍यान नहीं गया। एक और खबर पर उसका ध्‍यान गया तो वो थी इंडियन असेम्‍बली के चिकने चुपडे, सुपर स्‍टार, शशि थरूर की खबर पर। अब वो बार बार पूछती है कि इन दिनों थरूर किस मॉडल के साथ है, ये फिल्‍म में मोदी कहां से आ गया। सच कहूं तो इन दिनों मेरे घर में सास बहू के सीरियल कम और न्‍यूज चैनल अधिक देखे जा रहे हैं। क्‍यों न देखें? इसमें सारा मसाला आ रहा है और वो भी सच्‍ची दुनिया स्‍टाइल मे। अब तक चैनल वालों के निशाने पर अमिताभ बच्‍चन है, शाहरुख खान है, महेश भूपति है। इन लोगों के कारण चैनल वाले बडे परेशान है। आखिर यह लोग सानिया के रिसेप्‍शन में क्‍यों नहीं आए। आते तो खबर तीन चार बार ज्‍यादा रिपीट हो जाती। नहीं आने से करोडों का नुकसान हो गया। इसे कहते हैं बेगानी शादी में अब्‍दुला दिवाना।
किसी ने यह खबर नहीं दी कि सानिया पाकिस्‍तानी खिलाडी से शादी करने से भारत पाक संबंधों पर कोई असर पडेगा क्‍या ? पाकिस्‍तान ने कहा है कि सानिया अब पाकिस्‍तान की इज्‍जत है तो क्‍या शोएब मलिक भारतीय गेंदबाज की बॉल पर छक्‍का मारेगा तो हम तालियां बजाएंगे ? क्‍या शोएब मलिक को हम उतनी ही इज्‍जत देंगे। क्‍या दोनों देशों के राजनेता इस मुबारक मौके पर एक दुसरे के साथ बैठकर समस्‍या निपटा सकेंगे। कुछ चैनलों ने इस समाचार को पूरी तरह फिल्‍मी स्‍टाइल में ही दिखाया। आखिर नक्‍सलवाद पर मारे गए जवानों के प्रति हम कब जिम्‍मेदार होंगे। उनकी कवरेज क्‍यों नहीं हुई। अगर यही दिखाना था तो न्‍यूज चैनल ही क्‍यों। एंटरटेनमेंट चैनल पर ही यह काम कर लेते।

Sunday, April 11, 2010

प्रधानमंत्रीजी को एक पत्र


प्रधानमंत्री जी 
सादर वंदे
अमरीका यात्रा पर देरी से ही लेकिन हमारी शुभकामनाएं स्‍वीकार करें। वैसे तो आपको हम कुछ कहें यह गुस्‍ताखी ही होगी लेकिन आजाद भारत में जब लोग गलत काम के लिए गुस्‍ताखी दर गुस्‍ताखी करते जा रहे हैं तो मैं भी इसी तरफ एक कदम बढाकर स्‍वयं को गलत नहीं मानता। जब से होश संभाला है तब से दो देशों का नाम ही शक्तिशाली राष्‍ट़ के रूप में सुने और पढे। एक मिखाइल गोर्बाचोव के उस देश के जिसका आज कहीं अतापता नहीं है। दूसरा अमरीका का। जापान और चीन तो संघर्षशील राष्‍ट़ के रूप में ही हमेशा पेश किए गए। वैसे भी जापान और चीन को दूसरे देशों के आपसी मामलों में टांग अडाने का शौक नहीं है। अमरीका को ही यह शौक है, वो भी शायद इसलिए कि हमारे जैसे कई देश बार बार उसी की ओर ताकते हैं। हम ताकते हैं क्‍योंकि पाकिस्‍तान उसकी शरण में पडा है, हम उसकी निगाह ठण्‍डी चाहते हैं क्‍योंकि हमारा पडौसी दुश्‍मन देश उसकी चम्‍चागिरी करके हर बार उसकी ठण्‍डी निगाह से कोई न कोई फायदा उठा लेता है। वैसे भी मुझे देश की विदेश नीति का इतना ज्ञान नहीं है, लेकिन आम भारतीय के रूप में मेरा सोचना है कि यह देश अमरीका का गुलाम न तो पहले था और न अब है। पाकिस्‍तान अगर उसकी गोद में जाकर ही बैठ जाए या फिर ओबामा सहित कोई भी अमरीकी राष्‍ट़पति अगर इस्‍लामाबाद में बैठकर ही राजनीति शुरू कर दें तो हमें नहीं घबराना चाहिए। इस दुनिया में भारतीय अपने बूते जीता है और अपने दम पर ही आगे बढा है। आज अमरीका सहित समुची दुनिया की अर्थ व्‍यवस्‍था में हमारी भूमिका के बारे में आपको बताना और सूरज के सामने दीपक जलाने जैसा होगा। जब हम स्‍वयं शक्ति हैं तो दूसरी शक्तियों के सामने झुक कैसे सकते हैं। लोग आपको कमजोर प्रधानमंत्री कहते हैं लेकिन मेरा मन कहता है कि अमरीका में होने वाले अंतरराष्‍ट़ीय सम्‍मेलन में आप कमजोर दिखाई नहीं देंगे। शायद आप यह कहने में सफल होंगे कि अमरीका हमारी पंचायती करना छोड दें( वैसे भारत में आपने कई बार ऐसा कहने का साहस दिखाया है)। अमरीका चाहता है कि हम परमाणु हथियार की होड से बाहर हो जाएं। अरे भई हम होड में ही कहां ? हम तो पहले ही होड जीत चुके हैं। अमरीका को चाहिए कि वो पाकिस्‍तान को समझाएं कि हमारी बराबरी करने का सपना छोड दें। फिर अमरीका यह सलाह देने वाला होता भी कौन है ? रूस के साथ अमरीका की परमाणु हथियार की होड ने ही तो समूची दुनिया को इस विनाश की ओर आगे बढाया है। तभी तो हमारे जैसे भोले भाले देशों को पता चला कि परमाणु हथियार बना लेते हैं ताकि आगे काम आएगा। अब हेलरी‍ मैडम का कहना है कि भारत और पाकिस्‍तान के बीच होड के कारण परमाणु हथियार का बाजार गर्म हो रहा है तो हम मान लेते हैं। अगर यह होड हमारी है तो हमारे पर ही छोड देनी चाहिए।
प्रधानमंत्रीजी आप ही तो कहते हैं कि हम विकसित भारत की ओर बढ रहे हैं जब हम विकसित देश हो रहे हैं तो अमरीका जैसे छोटे से देश को इतना भाव देना कहां तक जरूरी है। हेलरी जहां से जीत कर आती है उतने वोटों के सांसद को तो हमारी संसद में पीछे वाली सीट भी मुश्किल से मिलती है। उसकी बात पर ज्‍यादा ध्‍यान देना भी कहां जरूरी है।
मौका पडे तो आप इतना जरूर कहना कि अमरीका पहले हमारी पंचायती छोडे और अपने देश को संभाले। हमारे यहां हो रही आतंककारी घटनाओं के अपराधी को हमारे हवाले करने में सहयोग करें। कहते हैं चोर की दाडी में तिनका होता है, इसलिए अमरीका अपनी दाडी हमारे सामने खुजाने के लिए भी तैयार नहीं है। हेडली तो एक उदाहरण है, ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे कि अमरीका नहीं चाहता कि हम उससे आगे एक बडी शक्ति के रूप में सामने आएं।
जोश में कुछ ज्‍यादा कह दिया तो क्षमा।
आपका ही
प्रेम भारतीय