Monday, February 23, 2009
हम फिल्मों के 'भी' सरताज ''थैंक्स रहमान & पिंकी ''
बधाई हो भारत। उत्सव का अवसर है, मौका है झूमने का, गाने का, आतिशबाजी करने का, गलियों में 'हो' 'हो' करके अपना उत्साह दिखाने का। मुझे पूरी तरह तो नहीं लेकिन कुछ कुछ याद है कि जब कपिल इलेवन ने क्रिकेट का विश्वकप जीता तो खूब हो हल्ला हुआ था। मेरे शहर बीकानेर में जैसे हर घर में विवाह शादी है, हर कोई पटाखे छोड रहा था। आज सुबह साढे छह बजे से ग्यारह बजते बजते भारत ने एक दो नहीं बल्कि 9 विश्व खिताब जीत लिए लेकिन पटाखे तो दूर किसी ने पचास पैसे का एसएमएस करके भी बधाई नहीं दी। ऑस्कर में सत्यजीत रे को लाइफ एचीवमेंट पुरस्कार मिला तब भी कुछ भारतीय फिल्मकारों ने एक दूसरे को बधाई दी और बात खत्म। आमीर खान जब से नोमिनेट हो रहे थे तब से उनके लिए दुआ कर रहे थे, आज रहमान ने आमीर का यह सपना पूरा कर दिया। किसी भी भारतीय को यह जीत कम नहीं आंकनी चाहिए। बात सिर्फ फिल्मों की नहीं है, बात ऐसे क्षेत्र में विजय पताका फहराने की है जिसमें प्रतिस्पद़र्धा हर कदम पर है। क्रिकेट खेलने वाले दुनिया के दो दर्जन देश भी नहीं है लेकिन फिल्म बनाने वाले देशों की संख्या सैकडों में है। ऐसे में पश्चिमी देशों में तो फिल्म एक पूजा है, पैशन है। हर फिल्म दूसरे से बेहतर है। इस बीच भारतीय फिल्मकारों का प्रयास सफल हुआ तो हमें प्रसन्नता होनी चाहिए। आज जब भारत हर क्षेत्र में श्रेष्ठता साबित कर रहा है, ऐसे में फिल्म के क्षेत्र में मिली सफलता निश्चित रूप से सराहनीय है। उत्सव योग्य है। 'स्लमडॉग मिलेनियर' हो या फिर 'स्माइल पिंकी' दोनों के कलाकारों को सिर माथे चढाना ही होगा। अल्ला रखा रहमान भारतीय सिनेमा में अब सत्यजीत रे के नजदीक पहुंच गए हैं और कई बडे दिग्गजों को पीछे छोड चुके हैं। देश में इन दिनों क्रिकेट का बुखार ज्यादा है इसलिए मैं उसी भाषा में कहूंगा 'रहमान फिल्मों के धोनी है' सच में सब को धो डाला। भारतीय फिल्म के इस सबसे बडे दिन पर सभी ब्लॉगर्स को बहुत बहुत बधाई। आज के दिन को भारतीय फिल्म में विशेष रूप से न सिर्फ केवल आज बल्कि हर वर्ष मनाया जाना चाहिए। कैसे मनाया जाए यह फैसला आप करें और अपना सुझाव दें। हम ब्लॉगर्स की भी जिम्मेदारी है कि हम इस बडे दिन को विशेष स्वरूप में मनाने के लिए सुझाव दें। मैं प्रयास करूंगा कि जो भी सुझाव आएंगे उन्हें आगे तक पहुंचाऊंगा। photo by bbc news. (with Thanks)
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4 comments:
न तो यह फिल्म भारतीय है और ना ही आस्कर जीतने पर खुशी मनाने का कोई कारण है
भारत की गंदगी को उघाड़कर दो टके का फिल्मकार ऑस्कर ले उड़ा और हम पागल हो रहे हैं
इससे कई-कई गुना बेहतर फिल्में रोज हमारे यहां बन रही हैं पर ये गोरी चमड़ी वाले ने बनाई है ना
भुवनेश से सहमत, हालांकि एक दिन पहले ही इस फ़िल्म के "सेकुलर" पक्ष को लेकर हम आशान्वित थे कि इसे ऑस्कर मिल कर रहेगा… वैसे स्लमडाग फ़िल्म तकनीकी दृष्टि से बाकी कई प्रविष्टियों के सामने बहुत घटिया है, लेकिन फ़िर भी इसे पुरस्कार मिला… किसी-किसी को आश्चर्य है, मुझे नहीं…
मुख्य मुद्दा भारत और भारतियों का ऑस्कर मंच पर सम्मान है, जो कि निर्विवाद विश्व स्तरीय सम्मान है. बहुत अच्छा लगा देख कर एवं गर्व की अनुभूति हुई.भविष्य के लिए भी शुभकामनाऐं.
महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
भुवनेश जी और सुरेश जी के विचारों का स्वागत। निश्चित रूप से इस फिल्म में अंग्रेजीयत की बू है और कुछ हद तक उनका शामिल होना ही ऑस्कर मिलने का एक कारण हो सकता है। यह भी सत्य है कि हमारी गरीबी का मजाक उडाया गया है। मेरा मानना है कि एआर रहमान सौ टका भारतीय है और उनको मिले सम्मान में न तो अंग्रेजीयत की बू है और गरीबी की झलक। कम से कम रहमान के लिए तो celibrate कर सकते हैं।
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