मेरा यह आलेख बहुत संक्षिप्त है लेकिन मैं चाहता हूं कि इस पर आप अपना विचार रखे कि श्रेष्ठ पत्रकारिता के क्या लक्षण हैं
Tuesday, December 16, 2008
आप कैसे पत्रकार ?
पिछले दिनों हमारी चर्चा न तो राजनीतिक थी और न साहित्य की! इसके बाद भी मामला जाते जाते अंत में पत्रकारिता तक पहुंच ही गया ! गलत भी नहीं था, जैसे माहौल में रहते हैं, वैसे ही मुद़दों पर चर्चा हो सकती है ! हमारे साथ बैठे एक सज्जन ने बहुत अच्छी बात कही ! उनका कहना था कि मानस में भी पत्रकारों का चित्रण हैं, मेरे लिए यह सुनना आश्चर्यजनक था ! इस तथ्य को समझना चाहा तो उन्होंने बताया कि मानस में एक पत्रकार मंथरा थी और दूसरे हनुमान जी ! एक पत्रकार के रूप में ही मंथरा ने जैसा स्वयं सोचा वैसा ही जाकर कैकयी को बता दिया! उनकी यह बात कैकयी ने जैसी मन में उतारी वैसा ही काम कर दिया ! बाद में भले ही मंथरा और कैकयी दोनों को अपनी सूचना और सोच पर पछतावा हुआ होगा लेकिन उनकी गलत सूचना ने मानस में नया अध्याय जोड दिया था! इसके बाद दूसरे पत्रकार के रूप में भगवान श्री हनुमान है, उन्हें एक टास्क दिया गया कि वो सीता माता का पता लगाए ! पूरी निष्ठा और चिंतन के साथ वो समुंद्र पार करके लंका पहुंचे! उनकी खोजी पत्रकारिता के कारण ही सीता माता मिले, वहां भी अपनी खबर की पुष्टि करने के लिए उन्होंने बकायदा प्रमाण प्रस्तुत किए, न सिर्फ प्रमाण दिए बल्कि अपनी सूचना को भगवान राम के समक्ष पूरी पुष्टि के साथ प्रस्तुत करने के लिए कुछ प्रमाण लिए, यह श्रेष्ठ पत्रकार का संकल्प होना चाहिए ! उनका कहना था कि अपने टास्क के प्रति हनुमानजी इतने संकल्पबद़ध थे कि रास्ते में कहीं भी दिग्भ्रमित नहीं हुए, आज के पत्रकार को भी शायद अपना लक्ष्य चुन लेना चाहिए कि उसे कौनसा पत्रकार बनना है !
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4 comments:
नारद जी को आप क्यो भूल गये साहेब्।
पत्रकार को भी शायद अपना लक्ष्य चुन लेना चाहिए कि उसे कौनसा पत्रकार बनना है !
*VERY GOOD & **ATTACK
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पत्रकार तो नारद और श्री गणेश भी थे । लेकिन आप मानस को गौर से देखें ,तो मंथरा को तात्कालिक तौर पर कैकयी से भरपूर उपहार और प्रशंसा भी मिली ,जबकि हनुमान को अपना समर्पण सिद्ध करने के लिए काफ़ी धीरज ,श्रम और समय लगा । ये दौर है झटपट सब कुछ पा लेने का ....."जो है समां कल हो ना हो" की फ़िलासफ़ी ने इस हद तक पैर पसार लिए हैं कि पत्रकार अब खबर लाने की ज़हमत नहीं उठाता । खबरें खुद चल कर आती हैं । जो चल कर आएंगी उनके अपने स्वार्थ और हित भी होंगे ।
जब न्यूज हंटिंग का जमाना और और रोजाना सुबह आपको एक रिपोर्ट तैयार करके भेजनी हो कि आज यह खबर लानी है उस दौर में लिपिकीय पत्रकार ही हो सकते हैं जो प्राप्त सूचनाओं को उस हद तक मसाले में पिराएं कि निगलने योग्य बन जाए। फिर भले ही वह सरकारी सूचना हो क्यों न हो। ऐसे में टास्क तो ठीक है लेकिन थीम पत्रकारिता जितना समय किसको मिल रहा है। एक महीने में दस हजार की तनख्वाह और रोजाना चार खबरें। यानि सैट फार्मेट है। खबर कैसी भी हो शाम आठ बजे तक सबमिट हो जानी चाहिए। ज्यादा अग्रेसिव या ज्यादा विश्लेषण हुआ तो वह आम आदमी से दूर भी हो जाएगी। कौन लिपिकीय पत्रकार इस खतरे को मोल लेना चाहेगा। तो हनुमान जिंदा है और अमर रहेंगे और टास्क पूरे करते रहेंगे। नारद, गणेश की भूमिका पर अधिक ध्यान देने का वक्त नजर नहीं आता। मंथराएं हर जगह दिखाई दे जाएंगी। क्या करें समय की मांग है।
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